Move on with me ever...

Always do that thing whose your heart wanted to be do .

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Sunday, February 21, 2010

Best Serial Key

Windows XP SP2 Serial Key :-

QQWD7-8GR4K-X9RCP-JJWH7-QPGQQ

Work in all SP2 XP 

Saturday, February 20, 2010

आदत के मुताबिक

नियमित रूप से वैश्यागमन करने वाले एक व्यक्ति की आखिरकार शादी हो ही गई। शादी के अगले ही दिन वह रोता हुआ अपने दोस्त के घर पहुंचा ।
- क्या बात है ? रो क्यों रहे हो ? दोस्त ने पूछा ।
-यार, तुम तो जानते हो मैं कैसा आदमी था। आज सुबह जब मैं जागा तो अपनी आदत के मुताबिक मैंने अपनी पत्नी को एक सौ रुपये का नोट थमा दिया ।
अच्छा ! तो यह बात है । देखो, आखिर वह तुम्हारी पत्नी है । उसे समझाओ कि वह तुम्हारे बीते दिनों को भूल जाए और साथ ही उसे विश्वास दिलाओ कि भविष्य में तुम उसके सिवा किसी और की तरफ देखोगे भी नहीं । देखना, वह मान जाएगी यार ..... !  
दोस्त ने दिलासा देते हुए कहा ।
आदमी ने गुस्से से लाल होते हुए कहा - यार, बात वह नहीं है । उसने सौ का नोट रखकर मुझे पचास रुपये वापस कर दिए ................ ।

आलसी

एक ऑफिस में दस बहुत ही आलसी कर्मचारी थे। एक दिन बॉस ने उन लोगों को सुधारने की गरज से एक प्लान सोचा।
- मेरे पास एक बहुत ही आसान काम है जिसके दोगुने पैसे मिलेंगे। तुम लोगों में जो सबसे ज्यादा आलसी होगा उसे ही यह काम दिया जाएगा। जो सबसे ज्यादा आलसी हो वह अपना हाथ उठाए ।
नौ हाथ तुरंत ऊपर उठ गए।
- तुमने हाथ क्यों नहीं उठाया ? बॉस ने दसवें आदमी से पूछा ।
- मुझसे नहीं उठाया जाता ...........

सुखी जीवन का राज

हाल ही में हमारे पड़ोस में एक बूढ़े सज्जन रहने को आये । काफी खुशमिजाज और जवांदिल लगते थे।
एक दिन मैंने उनसे पूछा - आप उम्र के लिहाज से काफी तन्दुरुस्त और खुश दिखते हैं । आपके सुखी जीवन का राज क्या है ?
- मैं रोज तीन पैकेट सिगरेट पीता हूं । शाम को व्हिस्की का अध्दा और बढ़िया मसालेदार खाना खाता हूं। और हां, व्यायाम तो मैं कभी नहीं करता।
- कमाल है । मैं आश्चर्य से भर गया।
मैंने फिर पूछा - वैसे आपकी उम्र क्या होगी ?
- छब्बीस साल ।

तू यहां कैसे ?

संता की बीबी प्रीतो एक दुकान पर पहुंची जहां परिंदे बेचे जाते थे। एक तोते के पिंजरे के आगे कीमत लिखी थी - मात्र 50 रु. ।
प्रीतो ने दुकानदार से पूछा - इसकी कीमत इतनी कम क्यों है जबकि तुम्हारी दुकान पर दूसरा कोई भी तोता 500 रु. से कम का नहीं है।
- दरअसल इस तोते का बोलचाल ठीक नहीं है। यहां आने के पहले यह एक वैश्या के घर में था। इसलिए कभी-कभी अश्लील बातें और भद्दी गालियां बकने लगता है। आप कोई दूसरा तोता ले जाइये, यह आपके घर के लायक नहीं है।
प्रीतो ने दो मिनट सोचा फिर बोली - चलेगा। मैं इसे अपने घर के लायक बना लूंगी। आप तो यही तोता दे दीजिए।
घर लाकर उसने तोते का पिंजरा अपने बेडरूम में टांग दिया और उसके कुछ बोलने का इंतजार करने लगी।
तोते ने शांतिपूर्वक इधर-उधर का मुआयना किया फिर बोला - वाह ! नया घर और नई औरत ! क्या बात है !
- ये तो कोई गाली नहीं है। प्रीतो  ने सोचा ।
थोड़ी देर बाद उसकी दोनों बेटियां कॉलेज से वापस आ गईं ।
उन्हें देखते ही तोता बोला  - दो-दो नई लड़कियां ! क्या किस्मत है बाप !
- इसमें भी ऐसी कोई बुरी बात नहीं बोली है उसने। दुकानदार खांमखा डरा रहा था। प्रीतो ने सोचा ।
शाम को प्रीतो का पति संता घर आया । उसे देखते ही तोता चहक कर बोला - ओए संता ! तू यहां कैसे यार ?

क्या चाहिए था ... ?

एक गांव में बाढ़ आ गई। घरों में पानी भरने लगा तो गांव के लोग जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों की तरफ चले गये। केवल एक आदमी, जो भगवान का बड़ा भक्त था, अपने घर में फंसा रह गया। जब पानी ज्यादा बढ़ने लगा तो वह छत पर चढ़ गया और भगवान से प्रार्थना करने लगा। तभी एक नाव उसके घर के पास से गुजरी। नाव पर सवार आदमी ने चिल्लाकर उसे नाव पर आने के लिए कहा पर आदमी ने मना कर दिया। बोला - मुझे अपने भगवान पर पूरा विश्वास है। वे मुझे जरूर बचा लेंगे। तुम जाओ।
नाव वाला नाव लेकर चला गया। आदमी फिर प्रार्थना करने लगा। करीब एक घंटे बाद एक मोटरबोट उसकी तरफ आई। मोटरबोट सवार ने भी उस आदमी  से चलने का अनुरोध किया पर उस आदमी ने उसे भी मना कर दिया - नहीं भाई। तुम जाओ । मेरे प्रभु मुझे बचाने अवश्य आएंगे। और फिर प्रार्थना में तल्लीन हो गया।
कुछ देर बाद एक हेलिकॉप्टर वहां से गुजरा। छत पर खड़े अकेले आदमी को देखकर उन्होंने रस्सी उसकी ओर फेंकी और हेलिकॉप्टर पर आने का इशारा किया। पर उस आदमी ने उनकी भी मदद लेने से इनकार कर दिया। बोला - आप लोग चिन्ता न करें । मेरे भगवान मुझे बचा लेंगे।
अंतत: पानी छत पर आ गया और उस आदमी की डूब कर मौत हो गई।
परलोक पहुंचने पर वह सीधा भगवान के सामने जा खड़ा हुआ और फट पड़ा - भगवान ! ये आपने ठीक नहीं किया ! मैंने सच्चे मन से आपकी प्रार्थना की ! आप पर भरोसा किया, इसके बावजूद आपने मुझे नहीं बचाया ! आखिर क्यों ?
भगवान आवेश में आकर बोले - अरे मूर्ख ! मैंने तुझे बचाने के लिए एक नाव, एक मोटरबोट और एक हेलिकॉप्टर भेजा ! अब और तुझे क्या चाहिए था ......... ?

लाल रंग की कमीज

स्पेनिश नौसेना के एक युध्दपोत का कप्तान एक दिन डेक पर टहल रहा था कि तभी उसका सहायक भागता हुआ आया और चिल्लाया - सर ! मैंने अभी अभी दुश्मन का एक युध्दपोत देखा है जो हमारी तरफ आ रहा है ।
कप्तान ने शांतिपूर्वक उसकी बात सुनी, फिर उसे आदेश दिया - जाओ, मेरी लाल कमीज लेकर आओ ।
सहायक उसकी लाल रंग की कमीज ले आया जिसे कप्तान ने पहन लिया।
दोनों जलपोतों के बीच भयंकर युध्द हुआ और अंत में स्पेनिश पोत विजयी रहा। युध्द के बाद, सहायक ने कप्तान से पूछा - सर! मैं आपसे एक बात पूछना चाहता था! आपने युध्द के दौरान लाल रंग की कमीज क्यों पहनी ?
कप्तान ने गर्व भरे ढंग से बताया - ताकि यदि मुझे गोली लगे तो मेरे सैनिक मेरे शरीर से बहता हुआ खून न देख सकें और उनका हौसला न टूटे।
सहायक अपने कप्तान की बहादुरी और बुध्दिमत्ता का कायल हो गया। तभी एक दूसरा सिपाही भागता हुआ आया और बोला - सर, सर ! मैंने अभी दुश्मन के 20 युध्दपोत देखे हैं जो हमारी तरफ आ रहे हैं !
कप्तान, सहायक की ओर मुड़ा और आदेश दिया - जाओ और जाकर मेरी पीले रंग की पेन्ट लेकर आओ.....।

वहीं से......

मनोचिकित्सक बंता खत्री, मानसिक रोगी संता मजूमदार की जांच कर रहे थे।
डा. बंता - मान लो, इस वक्त यदि एक रेलगाड़ी तुम्हारी तरफ तेजी से आ रही हो, तो तुम क्या करोगे ?

संता - मैं अपने हेलीकॉप्टर में बैठूंगा और फुर्र से उड़ जाऊंगा ।

डा. बंता - तुम्हारे पास हेलीकॉप्टर कहां से आएगा ?

संता - वहीं से, जहां से तुम्हारी रेलगाड़ी आएगी ................ !

अनाड़ी

संता और बंता ने ढाबे के बाहर अपनी-अपनी स्‍कूटर खड़ी की और भीतर पहुंचने के बाद वहां खाना खा रहे एक ट्रक वाले की थाली से रोटी उठाकर खाने लगे।
ट्रक वाले ने कुछ नहीं कहा। वह शांति से उठा और बिल देकर बाहर चला गया। उसके जाने के बाद संता-बंता हंसने लगे।
संता : हा-हा, कितना बेवकूफ ट्रक वाला था।
बंता : हा-हा, कितना डरपोक भी था।
तभी वेटर बोला ' और कितना अनाड़ी ड्राइवर भी था...........बाहर आप दोनों की स्‍कूटरों को रौंदता हुआ चला गया।

कोई बात नहीं

एक रेस्तरां में एक सनकी ग्राहक बार-बार वेटर को परेशान कर रहा था।

ऐ वेटर ! एसी चालू करो। बहुत गर्मी है।

थोड़ी देर बाद ........

ऐ वेटर ! एसी बंद करो । बहुत ठंड हो गई है।

थोड़ी देर बाद उसने फिर एसी चालू करवाया, फिर बंद करवाया। लगभग आधे-पौन घंटे से यही चल रहा था।

वेटर बहुत धैर्यवान था। वह बार बार उसके कहने से चला जाता और बिलकुल नाराज नहीं होता।

एक दूसरा ग्राहक, जो यह सब देख रहा था, वेटर से बोला - तुम इस सनकी आदमी को यहां से बाहर क्यों नहीं निकाल देते ।

वेटर मुस्कुराकर बोला - कोई फर्क नहीं पड़ता साहब, हमारे यहां तो एसी है ही नहीं .... ।

कैसे जाना ?

एक बार लुधियाना का फर्नीचर व्यवसायी बंतासिंह अपने मित्र संतासिंह के आमंत्रण पर अमरीका गया। एक शाम जब संता कहीं गया हुआ था, वह अकेला ही एक बार में पहुंचा, बीयर की एक बोतल ली और बार के एक कोने में पड़ी टेबल पर जाकर बैठ गया। उसकी टेबल के पास एक कुर्सी और थी जो खाली थी।

कुछ देर बाद एक सुंदर सी युवती उसके पास आकर रुकी । उसने अंग्रेजी में बंतासिंह से कुछ कहा जो उसे  समझ में नहीं आया। बंता ने उसे बैठने का इशारा किया ।

बंता ने अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में उससे बात करने की कोशिश की पर बेकार। वे दोनों ही एक दूसरे की बात समझ नहीं पा रहे थे। आखिरकार बंता ने एक कागज पर बीयर के गिलास का चित्र बनाकर उसे दिखाया जिसे देखकर उसने हां में सिर हिलाया। बंता समझ गया कि लड़की बीयर पीना चाहती है। उसने उसके लिए भी एक बीयर का आर्डर कर दिया। 

पीना खत्म होने के बाद बंता ने एक और कागज पर खाने से भरी प्लेट का चित्र बनाकर उसे दिखाया। उसने फिर हां में सिर हिलाया और बंता ने खाने का आर्डर भी कर दिया।
खाना खाने के बाद, युवती ने एक कागज लिया। उस पर पलंग का चित्र बनाकर वह बंतासिंह को दिखाकर मुस्कराई ।

बंतासिंह ने चकित होते हुए उसके जबाब में हां में सिर हिलाया और बिल चुकाकर चला आया।

इस बात को इतने साल हो गये, आज तक बंतासिंह को यह समझ में नहीं आया कि लड़की ने कैसे जाना कि वह फर्नीचर का कारोबार करता है ........?

प्रश्नपत्र

एक रात, चार कॉलेज विद्यार्थी देर तक मस्ती करते रहे और जब होश आया तो अगली सुबह होने वाली परीक्षा का भूत उनके सामने आकर खड़ा हो गया।

परीक्षा से बचने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई।  मैकेनिकों जैसे गंदे और फटे पुराने  कपड़े पहनकर वे प्रिंसिपल के सामने जा खड़े हुए और उन्हें अपनी दुर्दशा की जानकारी दी। उन्होंने प्रिंसिपल को बताया कि कल रात वे चारों एक दोस्त की शादी में गए हुए थे। लौटते में गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया। किसी तरह धक्का लगा-लगाकर गाड़ी को यहां तक लाए हैं। इतनी थकान है कि बैठना भी संभव नहीं दिखता, पेपर हल करना तो दूर की बात है। यदि प्रिंसिपल साहब उन चारों की परीक्षा आज के बजाय किसी और दिन ले लें तो बड़ी मेहरबानी होगी।

प्रिंसिपल साहब बड़ी आसानी से मान गए। उन्होंने तीन दिन बाद का समय दिया। विद्यार्थियों ने प्रिंसिपल साहब को धन्यवाद दिया और जाकर परीक्षा की तैयारी में लग गए।
तीन दिन बाद जब वे परीक्षा देने पहुंचे तो प्रिंसिपल ने बताया कि यह विशेष परीक्षा केवल उन चारों के लिए ही आयोजित की गई है। चारों को अलग-अलग कमरों में बैठना होगा।
चारों विद्यार्थी अपने-अपने नियत कमरों में जाकर बैठ गए। जो प्रश्नपत्र उन्हें दिया गया उसमें केवल दो ही प्रश्न थे -

प्र. 1   आपका नाम क्या है ?  (2 अंक)
प्र. 2 गाड़ी का कौनसा टायर पंक्चर हुआ था ? ( 98 अंक )
      अ.  अगला बायां                ब. अगला दायां
      स.  पिछला बायां                द.  पिछला दायां

खरगोश मर गया

एक दिन जब संता घर लौटा तो उसने देखा कि उसका कुत्ता पड़ोसी के पालतू खरगोश को मुंह में दबाये भागता चला आ रहा है। किसी तरह उसने कुत्ते से खरगोश को छुड़ाया। परन्तु खरगोश मर चुका था। यह सोचकर कि कहीं पड़ोसी ने देख लिया तो बवाल खड़ा कर देगा, वह खरगोश को फौरन घर के अंदर ले गया। अंदर ले जाकर उसने खरगोश को अच्छी तरह नहला कर साफ किया। उसके बाल संवारे ताकि कुत्ते के दांतों के निशान दिखाई न दें और पड़ोसी की नजर बचाकर वापस उसके पिंजरे में रख आया ताकि पड़ोसी समझे कि वह अपनी स्वाभाविक मौत मरा है।
कुछ दिनों बाद, एक सुबह, उसकी पड़ोसी से मुलाकात हुई। पड़ोसी ने संता को बताया - भाईसाहब, पिछले दिनों हमारा खरगोश मर गया ?
- कैसे ? कब ? आखिर हुआ क्या था उसे ? संता ने अनजान बनने का ढोंग करते हुए पूछा ।
- क्या हुआ था यह तो पता नहीं । एक दिन उसने अचानक खाना पीना बन्द कर दिया और अगले दिन मर गया।  पड़ोसी ने बताया।
- च..... च........ बहुत बुरा हुआ। संता ने अफसोस जाहिर किया।
- हां ..... उसके बाद तो और भी बुरा हुआ । पड़ोसी ने कहा।
- अच्छा ? उसके बाद क्या हुआ ?
- जिस दिन खरगोश मरा था हमने उसी दिन उसे अपने बगीचे में एक जगह गाड़ दिया था मगर उसके अगले दिन न जाने किस कम्बख्त ने उसे वहां से निकाला, नहलाया-धुलाया और वापस पिंजरे में रख आया ...... !

इससे सिध्द होता है

दर्शनशास्त्र की कक्षा में प्रोफेसर साहब भगवान के अस्तित्व के संबंध में पढ़ा रहे थे।
- क्या आप में से किसी ने भगवान की आवाज सुनी है ? प्रोफेसर ने छात्रों से सवाल किया।
कोई नहीं बोला ।
- क्या किसी ने भगवान को छुआ है ?
फिर से, कोई नहीं बोला ।
- क्या किसी ने भगवान को देखा है ?
जब इस बार भी छात्रों की ओर से कोई जवाब नहीं आया तो प्रोफेसर साहब बोले - इससे सिध्द होता है कि भगवान नहीं है ।
एक छात्र से नहीं रहा गया। उसने हाथ उठाकर प्रोफेसर से बोलने की अनुमति मांगी। अनुमति मिलने पर वह प्रोफेसर साहब की डेस्क के पास आकर छात्रों को संबोधित करते हुए बोला - क्या किसी ने प्रोफेसर साहब के दिमाग की आवाज सुनी है ?
कोई नहीं बोला ।
- क्या किसी ने प्रोफेसर के दिमाग को छुआ है ?
फिर से, कोई नहीं बोला।
- क्या किसी ने प्रोफेसर के दिमाग को देखा है ।
कोई आवाज नहीं आई ।
तब छात्र ने निष्कर्ष बताया - इससे सिध्द होता है कि प्रोफेसर साहब के दिमाग है ही नहीं

सौ साल

मोहन : यार कोई ऐसा उपाय बता कि मैं सौ साल तक जिंदा रहूं।
गोपाल : बहुत आसान है। तीन दिन में एक बार भोजन कर और तीन-चार शादियां कर ले।
मोहन : क्या इससे मैं सौ साल तक जिंदा रहूंगा ?
गोपाल : नहीं, पर इससे तुम जल्दी ही सौ साल के लगने लगोगे ........!

वह क्या चीज थी

एक दिन संतासिंह अपनी मोटरसाइकिल पर पाकिस्तान से हिंदुस्तान आते समय बॉर्डर पर पकड़ा गया। उसने अपने कंधे पर एक बड़ा सा बैग लटका रखा था।
दरोगा बंतासिंह ने कड़ककर पूछा - इस बैग में क्या है ?
संतासिंह ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया - रेत है साबजी ।
परन्तु दरोगा बंतासिंह को जवाब से संतोष नहीं हुआ। उसने सिपाहियों को बैग की तलाशी लेने का आदेश दिया। बैग में सचमुच रेत के अलावा कुछ नहीं निकला । मजबूरन दरोगा को उसे छोड़ना पड़ा।
कुछ दिनों बाद फिर इसी तरह संतासिंह मोटरसाइकिल पर कंधे पर बैग लटकाए पकड़ा गया । दरोगा बंतासिंह ने फिर बैग की तलाशी ली परन्तु उसमें रेत के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं निकला जो आपत्तिजनक हो। संतासिंह फिर छोड़ दिया गया।
फिर तो ऐसा महीने में दो-तीन बार होने लगा। दरोगा बंतासिंह का शक भी बढ़ने लगा पर कोई सबूत हाथ न लगने से संतासिंह हर बार बचकर निकल जाता था। 
लगभग सात-आठ महीने तक यही क्रम चलता रहा फिर एकाएक संतासिंह का आना बन्द हो गया।
कुछ महीने बाद जब बंतासिंह छुट्टी पर आया तब उसने संतासिंह को दिल्ली के एक मंहगे रेस्त्रां में कॉफी की चुस्कियां लेते पकड़ा।
- संता, एक बात बताओ । विश्वास करो यह सिर्फ तुम्हारे और मेरे बीच ही रहेगा।
बंता सिंह ने दोस्ताना लहजे में कहा। - मुझे पूरा यकीन है कि तुम किसी चीज की तस्करी कर रहे थे । पर वह क्या चीज थी जो मेरी नजरें पकड़ नहीं सकीं ? कम से कम रेत तो बिलकुल नहीं थी।
मोटरसाइकिल - संतासिंह ने मुस्कुराते हुए बताया।

कमीज के अन्दर

एक शराबी और उसकी बीबी रात को सो रहे थे। आधी रात को अचानक पति की चीख सुनकर पत्नी की आंख खुल गई। उसने पति से पूछा - क्या बात है ?
पति बोला - कुछ नहीं, मेरी कमीज नीचे गिर गई थी।
खीझ कर पत्नी बोली - तो इतनी जोर से क्यों चीखे ?
पति बोला - उस कमीज के अन्दर मैं भी था ।

चार आदमी काफी हैं

चार आदमी बंता की सास को पीट रहे थे। बंता चुपचाप सामने खड़ा देख रहा था। उसे इस तरह खड़ा देखकर संता से नहीं रहा गया।
वह बंता से बोला - क्या तुम मदद के लिए नहीं जाओगे?
संता बोला - नहीं, चार आदमी काफी हैं।

फोकट में

कार्यालय में सीबीआई अधिकारी को गुमनाम फोन आया कि बंता टालवाले ने लकड़ियों में स्मैक छुपा रखी है। अधिकारी ने कर्मचारियों के साथ छापा मारा और पूरी टाल छान मारी। बंता निरंतर सफाई देता रहा। अधिकारी का शक बढ़ गया तो उसने कर्मचारियों को आदेश दिया। जितने मोटे लटठे हैं सबको चीर कर देखो। कर्मचारियों ने कुल्हाड़ियां उठाईं और सारे लट्ठे फाड़ डाले। कुछ नहीं मिला।
शाम को बंता टालवाले को फोन मिला- कहो गुरू, काम हुआ।
कैसा काम? बंता चकरा गया।
अरे लकड़िया चिर गईं कि नहीं। .....फोकट में।
हां ....... अच्छा । तो तुम्हारा किया धरा था यह सब!
हां, ध्यान रखना गुरू, अब मेरा बगीचा जुतवाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है .....

कितना समय लगेगा

एक आदमी एक नाई की दूकान में घुसा और पूछा - "भाई, बाल कटवाने हैं, कितना समय लगेगा ?" दूकान में पहले ही भीड़ थी सो नाई बोला - "लगभग तीन घंटे." आदमी यह सुनकर वापस चला गया.
तीन-चार दिन बाद वही आदमी फिर आया और उसने फिर पूछा - "बाल कटवाने हैं, कितना समय लगेगा ?" नाई ने ग्राहकों को देखकर अंदाज़े से बताया - "दो घंटे तो लग जायेंगे." आदमी फिर वापस चला गया.
तीन-चार दिन बाद फिर वही आदमी आया और नाई के बताने पर कि अभी एक-डेढ़ घंटा लगेगा, फिर वापस चला गया.
अगली बार जब फिर से वही आदमी आया और टाइम पूछकर वापस जाने लगा तो नाई ने अपने सहायक से कहा - "मुन्ना, ये आदमी हर बार कितना समय लगेगा पूछकर चला जाता है, कभी बाल कटवाने लौटकर नहीं आया. ज़रा देख तो ये आखिर कहाँ जाता है. "
थोड़ी देर बाद मुन्ना मुस्कुराता हुआ वापस लौटा. नाई ने पूछा - "क्या हुआ, आखिर कहाँ गया वह आदमी ?"
मुन्ना - "आपके घर....." !!!!

Funny Definitions

अनुभव : भूतकाल में की गई गलतियों का दूसरा नाम ।


 कूटनीतिज्ञ : वह व्यक्ति जो किसी स्त्री का जन्मदिन तो याद रखे पर उसकी उम्र कभी नहीं।  

दूसरी शादी : अनुभव पर आशा की विजय।

आशावादी : वह शख्स है जो सिगरेट मांगने पहले अपनी दियासलाई जला ले।


राजनेता : ऐसा आदमी जो धनवान से धन और गरीबों से वोट इस वादे पर बटोरता है कि वह एक की दूसरे से रक्षा करेगा।


आमदनी : जिसमें रहा न जा सके और जिसके बगैर भी रहा न जा सके

मनोवैज्ञानिक : वह व्यक्ति, जो किसी खूबसूरत लड़की के कमरे में दाखिल होने पर उस लड़की के सिवाय बाकी सबको गौर से देखता है।


नयी साड़ी : जिसे पहनकर स्त्री को उतना ही नशा हो जितना पुरुष को शराब की एक पूरी बोतल पीकर  होता है।

Definition

अवसरवादी : वह व्यक्ति, जो गलती से नदी में गिर पड़े तो नहाना शुरू कर दे।

Strange Facts

लास वेगास के जुआघरों में घड़ियां नहीं होतीं।

Strange Facts

-मनुष्य के शरीर में हर सेकेण्ड 15 मिलियन लाल रक्त कणिकाएं पैदा होतीं हैं और मरती हैं

खुशामद

एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, 'कहो जी, तुम्हारी माशूका तुम्हें क्यों नहीं मिली।'

बेचारा उदास होकर बोला, 'यार कुछ न पूछो! मैंने इतनी खुशामद की कि उसने अपने को सचमुच ही परी समझ लिया और हम आदमियों से बोलने में भी परहेज किया।'
– भारतेन्दु हरिश्चन्द्न

वरदान

विन्घ्याचल पर्वत मध्यरात्रि के निविड़ अन्धकार में काल देव की भांति खड़ा था। उस पर उगे हुए छोटे-छोटे वृक्ष इस प्रकार दष्टिगोचर होते थे, मानो ये उसकी जटाएं है और अष्टभुजा देवी का मन्दिर जिसके कलश पर श्वेत पताकाएं वायु की मन्द-मन्द तरंगों में लहरा रही थीं, उस देव का मस्तक है मंदिर में एक झिलमिलाता हुआ दीपक था, जिसे देखकर किसी धुंधले तारे का मान हो जाता था।
अर्धरात्रि व्यतीत हो चुकी थी। चारों और भयावह सन्नाटा छाया हुआ था। गंगाजी की काली तरंगें पर्वत के नीचे सुखद प्रवाह से बह रही थीं। उनके बहाव से एक मनोरंजक राग की ध्वनि निकल रही थी। ठौर-ठौर नावों पर और किनारों के आस-पास मल्लाहों के चूल्हों की आंच दिखायी देती थी। ऐसे समय में एक श्वेत वस्त्रधारिणी स्त्री अष्टभुजा देवी के सम्मुख हाथ बांधे बैठी हुई थी। उसका प्रौढ़ मुखमण्डल पीला था और भावों से कुलीनता प्रकट होती थी। उसने देर तक सिर झुकाये रहने के पश्चात कहा।
‘माता! आज बीस वर्ष से कोई मंगलवार ऐसा नहीं गया जबकि मैंने तुम्हारे चरणो पर सिर न झुकाया हो। एक दिन भी ऐसा नहीं गया जबकि मैंने तुम्हारे चरणों का ध्यान न किया हो। तुम जगतारिणी महारानी हो। तुम्हारी इतनी सेवा करने पर भी मेरे मन की अभिलाषा पूरी न हुई। मैं तुम्हें छोड़कर कहां जाऊ?’
‘माता! मैंने सैकड़ों व्रत रखे, देवताओं की उपासनाएं की’, तीर्थयाञाएं की, परन्तु मनोरथ पूरा न हुआ। तब तुम्हारी शरण आयी। अब तुम्हें छोड़कर कहां जाऊं? तुमने सदा अपने भक्तो की इच्छाएं पूरी की है। क्या मैं तुम्हारे दरबार से निराश हो जाऊं?’
सुवामा इसी प्रकार देर तक विनती करती रही। अकस्मात उसके चित्त पर अचेत करने वाले अनुराग का आक्रमण हुआ। उसकी आंखें बन्द हो गयीं और कान में ध्वनि आयी।
‘सुवामा! मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूं। मांग, क्या मांगती है?
सुवामा रोमांचित हो गयी। उसका हृदय धड़कने लगा। आज बीस वर्ष के पश्चात महारानी ने उसे दर्शन दिये। वह कांपती हुई बोली ‘जो कुछ मांगूंगी, वह महारानी देंगी’ ?
‘हां, मिलेगा।’
‘मैंने बड़ी तपस्या की है अतएव बड़ा भारी वरदान मांगूगी।’
‘क्या लेगी कुबेर का धन’?
‘नहीं।’
‘इन्द का बल।’
‘नहीं।’
‘सरस्वती की विद्या?’
‘नहीं।’
‘फिर क्या लेगी?’
‘संसार का सबसे उत्तम पदार्थ।’
‘वह क्या है?’
‘सपूत बेटा।’
‘जो कुल का नाम रोशन करे?’
‘नहीं।’
‘जो माता-पिता की सेवा करे?’
‘नहीं।’
‘जो विद्वान और बलवान हो?’
‘नहीं।’
‘फिर सपूत बेटा किसे कहते हैं?’
‘जो अपने देश का उपकार करे।’
‘तेरी बुद्वि को धन्य है। जा, तेरी इच्छा पूरी होगी।’

मुँशी प्रेमचँद की कहानी

हार की जीत

माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में न था। बाबा भारती उसे ‘सुल्तान’ कह कर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे। उन्होंने रूपया, माल, असबाब, ज़मीन आदि अपना सब-कुछ छोड़ दिया था, यहाँ तक कि उन्हें नगर के जीवन से भी घृणा थी। अब गाँव से बाहर एक छोटे-से मन्दिर में रहते और भगवान का भजन करते थे। “मैं सुलतान के बिना नहीं रह सकूँगा”, उन्हें ऐसी भ्रान्ति सी हो गई थी। वे उसकी चाल पर लट्टू थे। कहते, “ऐसे चलता है जैसे मोर घटा को देखकर नाच रहा हो।” जब तक संध्या समय सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर न लगा लेते, उन्हें चैन न आता।
खड़गसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे। होते-होते सुल्तान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुँची। उसका हृदय उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। वह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और नमस्कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने पूछा, “खडगसिंह, क्या हाल है?”
खडगसिंह ने सिर झुकाकर उत्तर दिया, “आपकी दया है।”
“कहो, इधर कैसे आ गए?”
“सुलतान की चाह खींच लाई।”
“विचित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।”
“मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है।”
“उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी!”
“कहते हैं देखने में भी बहुत सुँदर है।”
“क्या कहना! जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।”
“बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो सका हूँ।”
बाबा भारती और खड़गसिंह अस्तबल में पहुँचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से, खड़गसिंह ने देखा आश्चर्य से। उसने सैंकड़ो घोड़े देखे थे, परन्तु ऐसा बाँका घोड़ा उसकी आँखों से कभी न गुजरा था। सोचने लगा, भाग्य की बात है। ऐसा घोड़ा खड़गसिंह के पास होना चाहिए था। इस साधु को ऐसी चीज़ों से क्या लाभ? कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। इसके पश्चात् उसके हृदय में हलचल होने लगी। बालकों की-सी अधीरता से बोला, “परंतु बाबाजी, इसकी चाल न देखी तो क्या?”
दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय अधीर हो गया। घोड़े को खोलकर बाहर गए। घोड़ा वायु-वेग से उडने लगा। उसकी चाल को देखकर खड़गसिंह के हृदय पर साँप लोट गया। वह डाकू था और जो वस्तु उसे पसंद आ जाए उस पर वह अपना अधिकार समझता था। उसके पास बाहुबल था और आदमी भी। जाते-जाते उसने कहा, “बाबाजी, मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूँगा।”
बाबा भारती डर गए। अब उन्हें रात को नींद न आती। सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी। प्रति क्षण खड़गसिंह का भय लगा रहता, परंतु कई मास बीत गए और वह न आया। यहाँ तक कि बाबा भारती कुछ असावधान हो गए और इस भय को स्वप्न के भय की नाईं मिथ्या समझने लगे। संध्या का समय था। बाबा भारती सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। इस समय उनकी आँखों में चमक थी, मुख पर प्रसन्नता। कभी घोड़े के शरीर को देखते, कभी उसके रंग को और मन में फूले न समाते थे। सहसा एक ओर से आवाज़ आई, “ओ बाबा, इस कंगले की सुनते जाना।”
आवाज़ में करूणा थी। बाबा ने घोड़े को रोक लिया। देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले, “क्यों तुम्हें क्या कष्ट है?”
अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा, “बाबा, मैं दुखियारा हूँ। मुझ पर दया करो। रामावाला यहाँ से तीन मील है, मुझे वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।”
“वहाँ तुम्हारा कौन है?”
“दुगार्दत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ।”
बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे। सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए लिए जा रहा है। उनके मुख से भय, विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गई। वह अपाहिज डाकू खड़गसिंह था।बाबा भारती कुछ देर तक चुप रहे और कुछ समय पश्चात् कुछ निश्चय करके पूरे बल से चिल्लाकर बोले, “ज़रा ठहर जाओ।”
खड़गसिंह ने यह आवाज़ सुनकर घोड़ा रोक लिया और उसकी गरदन पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, “बाबाजी, यह घोड़ा अब न दूँगा।”
“परंतु एक बात सुनते जाओ।” खड़गसिंह ठहर गया।
बाबा भारती ने निकट जाकर उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा जैसे बकरा कसाई की ओर देखता है और कहा, “यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका है। मैं तुमसे इसे वापस करने के लिए न कहूँगा। परंतु खड़गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूँ। इसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।”
“बाबाजी, आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूँ, केवल घोड़ा न दूँगा।”
“अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूँगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।”
खड़गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसका विचार था कि उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परंतु बाबा भारती ने स्वयं उसे कहा कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। इससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है? खड़गसिंह ने बहुत सोचा, बहुत सिर मारा, परंतु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दीं और पूछा, “बाबाजी इसमें आपको क्या डर है?”
सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, “लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे।” यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही नहीं रहा हो।
बाबा भारती चले गए। परंतु उनके शब्द खड़गसिंह के कानों में उसी प्रकार गूँज रहे थे। सोचता था, कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है! उन्हें इस घोड़े से प्रेम था, इसे देखकर उनका मुख फूल की नाईं खिल जाता था। कहते थे, “इसके बिना मैं रह न सकूँगा।” इसकी रखवाली में वे कई रात सोए नहीं। भजन-भक्ति न कर रखवाली करते रहे। परंतु आज उनके मुख पर दुख की रेखा तक दिखाई न पड़ती थी। उन्हें केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग दीन-दुखियों पर विश्वास करना न छोड़ दे। ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है।
रात्रि के अंधकार में खड़गसिंह बाबा भारती के मंदिर पहुँचा। चारों ओर सन्नाटा था। आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे। थोड़ी दूर पर गाँवों के कुत्ते भौंक रहे थे। मंदिर के अंदर कोई शब्द सुनाई न देता था। खड़गसिंह सुल्तान की बाग पकड़े हुए था। वह धीरे-धीरे अस्तबल के फाटक पर पहुँचा। फाटक खुला पड़ा था। किसी समय वहाँ बाबा भारती स्वयं लाठी लेकर पहरा देते थे, परंतु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का भय न था। खड़गसिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकलकर सावधानी से फाटक बंद कर दिया। इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे। रात्रि का तीसरा पहर बीत चुका था। चौथा पहर आरंभ होते ही बाबा भारती ने अपनी कुटिया से बाहर निकल ठंडे जल से स्नान किया। उसके पश्चात्, इस प्रकार जैसे कोई स्वप्न में चल रहा हो, उनके पाँव अस्तबल की ओर बढ़े। परंतु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भूल प्रतीत हुई। साथ ही घोर निराशा ने पाँव को मन-मन भर का भारी बना दिया। वे वहीं रूक गए। घोड़े ने अपने स्वामी के पाँवों की चाप को पहचान लिया और ज़ोर से हिनहिनाया। अब बाबा भारती आश्चर्य और प्रसन्नता से दौड़ते हुए अंदर घुसे और अपने प्यारे घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे मानो कोई पिता बहुत दिन से बिछड़े हुए पुत्र से मिल रहा हो। बार-बार उसकी पीठपर हाथ फेरते, बार-बार उसके मुँह पर थपकियाँ देते। फिर वे संतोष से बोले, “अब कोई दीन-दुखियों से मुँह न मोड़ेगा।”
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सुदर्शन की कहानी

चीलें - भीष्म साहनी

चील ने फिर से झपट्टा मारा है। ऊपर, आकाश में मण्डरा रही थी जब सहसा, अर्धवृत्त बनाती हुई तेजी से नीचे उतरी और एक ही झपट्टे में, मांस के लोथड़े क़ो पंजों में दबोच कर फिर से वैसा ही अर्द्ववृत्त बनाती हुई ऊपर चली गई। वह कब्रगाह के ऊंचे मुनारे पर जा बैठी है और अपनी पीली चोंच, मांस के लोथडे में बार-बार गाड़ने लगी है।
कब्रगाह के इर्द-गिर्द दूर तक फैले पार्क में हल्की हल्की धुंध फैली है। वायुमण्डल में अनिश्चय सा डोल रहा है। पुरानी कब्रगाह के खंडहर जगह-जगह बिखरे पडे़ हैं। इस धुंधलके में उसका गोल गुंबद और भी ज्यादा वृहदाकार नजर आता है। यह मकबरा किसका है, मैं जानते हुए भी बार-बार भूल जाता हूँ। वातावरण में फैली धुंध के बावजूद, इस गुम्बद का साया घास के पूरे मैदान को ढके हुए है जहाँ मैं बैठा हूँ जिससे वायुमण्डल में सूनापन और भी ज्यादा बढ ग़या है, और मैं और भी ज्यादा अकेला महसूस करने लगा हूँ। 
चील मुनारे पर से उड़ कर फिर से आकाश में मंडराने लगी है, फिर से न जाने किस शिकार पर निकली है। अपनी चोंच नीची किए, अपनी पैनी आँखें धरती पर लगाए, फिर से चक्कर काटने लगी है, मुझे लगने लगा है जैसे उसके डैने लम्बे होते जा रहे हैं और उसका आकार किसी भयावह जंतु के आकार की भांति फूलता जा रहा है। न जाने वह अपना निशाना बांधती हुई कब उतरे, कहाँ उतरे। उसे देखते हुए मैं त्रस्त सा महसूस करने लगा हूँ।
किसी जानकार ने एक बार मुझसे कहा था कि हम आकाश में मंडराती चीलों को तो देख सकते हैं पर इन्हीं की भांति वायुमण्डल में मंडराती उन अदृश्य 'चीलों' को नहीं देख सकते जो वैसे ही नीचे उतर कर झपट्टा मारती हैं और एक ही झपट्टे में इन्सान को लहु-लुहान करके या तो वहीं फेंक जाती हैं, या उसके जीवन की दिशा मोड़ देती हैं। उसने यह भी कहा था कि जहाँ चील की आँखें अपने लक्ष्य को देख कर वार करती हैं, वहाँ वे अदृश्य चीलें अंधी होती हैं, और अंधाधुंध हमला करती हैं। उन्हें झपट्टा मारते हम देख नहीं पाते और हमें लगने लगता है कि जो कुछ भी हुआ है, उसमें हम स्वयं कहीं दोषी रहे होंगे। हम जो हर घटना को कारण की कसौटी पर परखते रहे हैं, हम समझने लगते हैं कि अपने सर्वनाश में हम स्वयं कहीं जिम्मेदार रहे होंगे। उसकी बातें सुनते हुए मैं और भी ज्यादा विचलित महसूस करने लगा था।
उसने कहा था, 'जिस दिन मेरी पत्नी का देहान्त हुआ, मैं अपने मित्रों के साथ, बगल वाले कमरे में बैठा बतिया रहा था। मैं समझे बैठा था कि वह अंदर सो रही है। मैं एक बार उसे बुलाने भी गया था कि आओ, बाहर आकर हमारे पास बैठो। मुझे क्या मालूम था कि मुझसे पहले ही कोई अदृश्य जंतु अन्दर घुस आया है और उसने मेरी पत्नी को अपनी जकड़ में ले रखा है। हम सारा वक्त इन अदृश्य जंतुओं में घिरे रहते है।'
अरे, यह क्या! शोभा? शोभा पार्क में आई है! हाँ, हाँ, शोभा ही तो है। झाड़ियों के बीचों-बीच वह धीरे-धीरे एक ओर बढ़ती आ रही है। वह कब यहाँ आई है और किस ओर से इसका मुझे पता ही नहीं चला।
मेरे अन्दर ज्वार सा उठा। मैं बहुत दिन बाद उसे देख रहा था।
शोभा दुबली हो गई है, तनिक झुक कर चलने लगी है, पर उसकी चाल में अभी भी पहले सी कमनीयता है, वही धीमी चाल, वही बांकापन, जिसमें उसके समूचे व्यक्तित्व की छवि झलकती है। धीरे-धीरे चलती हुई वह घास का मैदान लांघ रही है। आज भी बालों में लाल रंग का फूल ढंके हुए है।
शोभा, अब भी तुम्हारे होंठों पर वही स्निग्ध सी मुस्कान खेल रही होगी जिसे देखते मैं थकता नहीं था, होंठों के कोनों में दबी-सिमटी मुस्कान। ऐसी मुस्कान तो तभी होंठों पर खेल सकती है जब तुम्हारे मन में किन्हीं अलौकिक भावनाओं के फूल खिल रहे हों।
मन चाहा, भाग कर तुम्हारे पास पहुँच जाऊँ और पूछूं, शोभा, अब तुम कैसी हो?
बीते दिन क्यों कभी लौट कर नहीं आते? पूरा कालखण्ड न भी आए, एक दिन ही आ जाए, एक घड़ी ही, जब मैं तुम्हें अपने निकट पा सकूँ, तुम्हारे समूचे व्यक्तित्व की महक से सराबोर हो सकूँ।
मैं उठ खड़ा हुआ और उसकी ओर जाने लगा। मैं झाड़ियों, पेड़ों के बीच छिप कर आगे बढूंगा ताकि उसकी नजर मुझ पर न पडे़। मुझे डर था कि यदि उसने मुझे देख लिया तो वह जैसे-तैसे कदम बढ़ाती, लम्बे-लम्बे डग भरती पार्क से बाहर निकल जाएगी।
जीवन की यह विडम्बना ही है कि जहाँ स्त्री से बढ़ कर कोई जीव कोमल नहीं होता, वहाँ स्त्री से बढ़कर कोई जीव निष्ठुर भी नहीं होता। मैं कभी-कभी हमारे सम्बन्धों को लेकर क्षुब्ध भी हो उठता हूँ। कई बार तुम्हारी ओर से मेरे आत्म-सम्मान को धक्का लग चुका है।
हमारे विवाह के कुछ ही समय बाद तुम मुझे इस बात का अहसास कराने लगी थी यह विवाह तुम्हारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं हुआ है और तुम्हारी ओर से हमारे आपसी सम्बन्धों में एक प्रकार का ठण्डापन आने लगा था। पर मैं उन दिनों तुम पर निछावर था, मतवाला बना घूमता था। हमारे बीच किसी बात को लेकर मनमुटाव हो जाता, और तुम रूठ जाती, तो मैं तुम्हें मनाने की भरसक चेष्ठा किया करता, तुम्हें हँसाने की। अपने दोनों कान पकड़ लेता, 'कहो तो दण्डवत लेटकर जमीन पर नाक से लकीरें भी खींच दूँ, जीभ निकाल कर बार-बार सिर हिलाऊं?' और तुम, पहले तो मुँह फुलाए मेरी ओर देखती रहती, फिर सहसा खिलखिला कर हँसने लगती, बिल्कुल बच्चों की तरह जैसे तुम हँसा करती थी और कहती, 'चलो, माफ कर दिया।'
और मैं तुम्हें बाहों में भर लेता था। मैं तुम्हारी टुनटुनाती आवाज सुनते नहीं थकता था, मेरी आँखें तुम्हारे चेहरे पर तुम्हारी खिली पेशानी पर लगी रहती और मैं तुम्हारे मन के भाव पढ़ता रहता।
स्त्री-पुरूष सम्बन्धों में कुछ भी तो स्पष्ट नहीं होता, कुछ भी तो तर्क-संगत नहीं होता। भावनाओं के संसार के अपने नियम हैं, या शायद कोई भी नियम नहीं।
हमारे बीच सम्बन्धों की खाई चौड़ी होती गई, फैलती गई। तुम अक्सर कहने लगी थी, 'मुझे इस शादी में क्या मिला?' और मैं जवाब में तुनक कर कहता, 'मैंने कौन से ऐसे अपराध किए हैं कि तुम सारा वक्त मुँह फुलाए रहो और मैं सारा वक्त तुम्हारी दिलजोई करता रहूँ? अगर एक साथ रहना तुम्हें फल नहीं रहा था तो पहले ही मुझे छोड़ जाती। तुम मुझे क्यों नहीं छोड़ कर चली गई? तब न तो हर आये दिन तुम्हें उलाहनें देने पड़ते और न ही मुझे सुनने पड़ते। अगर गृहस्थी में तुम मेरे साथ घिसटती रही हो, तो इसका दोषी मैं नहीं हूँ, स्वयं तुम हो। तुम्हारी बेरूखी मुझे सालती रहती है, फिर भी अपनी जगह अपने को पीड़ित दुखियारी समझती रहती हो।'
मन हुआ, मैं उसके पीछे न जाऊँ। लौट आऊँ, और बेंच पर बैठ कर अपने मन को शांत करूँ। कैसी मेरी मन:स्थिति बन गई है। अपने को कोसता हूँ तो भी व्याकुल, और जो तुम्हें कोसता हूँ तो भी व्याकुल। मेरा सांस फूल रहा था, फिर भी मैं तुम्हारी ओर देखता खड़ा रहा।
सारा वक्त तुम्हारा मुँह ताकते रहना, सारा वक्त लीपा-पोती करते रहना, अपने को हर बात के लिए दोषी ठहराते रहना, मेरी बहुत बड़ी भूल थी।
पटरी पर से उतर जाने के बाद हमारा गृहस्थ जीवन घिसटने लगा था। पर जहाँ शिकवे-शिकायत, खीझ, खिंचाव, असहिष्णुता, नुकीले कंकड़-पत्थरों की तरह हमारी भावनाओं को छीलने-काटने लगे थे, वहीं कभी-कभी विवाहित जीवन के आरम्भिक दिनों जैसी सहज-सद्भावना भी हर-हराते सागर के बीच किसी झिलमिलाते द्वीप की भांति हमारे जीवन में सुख के कुछ क्षण भी भर देती।
पर कुल मिलाकर हमारे आपसी सम्बन्धों में ठण्डापन आ गया था। तुम्हारी मुस्कान अपना जादू खो बैठी थी, तुम्हारी खुली पेशानी कभी-कभी संकरी लगने लगी थी, और जिस तरह बात सुनते हुए तुम सामने की ओर देखती रहती, लगता तुम्हारे पल्ले कुछ भी नहीं पड़ रहा है। नाक-नक्श वही थे, अदाएँ भी वही थीं, पर उनका जादू गायब हो गया था। जब शोभा आँखें मिचमिचाती है- मैं मन ही मन कहता- तू बड़ी मूर्ख लगती है।
मैंने फिर से नजर उठा कर देखा। शोभा नजर नहीं आई। क्या वह फिर से पेड़ों-झाड़ियों के बीच आँखों से ओझल हो गई है? देर तक उस ओर देखते रहने पर भी जब वह नजर नहीं आई, तो मैं उठ खड़ा हुआ। मुझे लगा जैसे वह वहाँ पर नहीं है। मुझे झटका सा लगा। क्या मैं सपना तो नहीं देख रहा था? क्या शोभा वहाँ पर थी भी या मुझे धोखा हुआ है? मैं देर तक आँखें गाडे़ उस ओर देखता रहा जिस ओर वह मुझे नजर आई थी।
सहसा मुझे फिर से उसकी झलक मिली। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा था। पहले भी वह आँखों से ओझल होती रही थी। मुझे फिर से रोमांच सा हो आया। हर बार जब वह आँखों से ओझल हो जाती, तो मेरे अन्दर उठने वाली तरह-तरह की भावनाओं के बावजूद, पार्क पर सूनापन सा उतर आता। पर अबकी बार उस पर नजर पड़ते ही मन विचलित सा हो उठा। शोभा पार्क में से निकल जाती तो?
एक आवेग मेरे अन्दर फिर से उठा। उसे मिल पाने के लिए दिल में ऐसी छटपटाहट सी उठी कि सभी शिकवे-शिकायत, कचरे की भांति उस आवेग में बह से गए। सभी मन-मुटाव भूल गए। यह कैसे हुआ कि शोभा फिर से मुझे विवाहित जीवन के पहले दिनों वाली शोभा नजर आने लगी थी। उसके व्यक्तित्व का सारा आकर्षण फिर से लौट आया था। और मेरा दिल फिर से भर-भर आया। मन में बार-बार यही आवाज उठती, 'मैं तुम्हें खो नहीं सकता। मैं तुम्हें कभी खो नहीं सकता।'
यह कैसे हुआ कि पहले वाली भावनाएँ मेरे अन्दर पूरे वेग से फिर से उठने लगी थीं।
मैंने फिर से शोभा की ओर कदम बढा दिए।
हाँ, एक बार मेरे मन में सवाल जरूर उठा, कहीं मैं फिर से अपने को धोखा तो नहीं दे रहा हूँ? क्या मालूम वह फिर से मुझे ठुकरा दे?
पर नहीं, मुझे लग रहा था मानो विवाहोपरांत, क्लेश और कलह का सारा कालखण्ड झूठा था, माना वह कभी था ही नहीं। मैं वर्षो बाद तुम्हें उन्हीं आँखों से देख रहा था जिन आँखों से तुम्हें पहली बार देखा था। मैं फिर से तुम्हें बाहों में भर पाने के लिए आतुर और अधीर हो उठा था।
तुम धीरे-धीरे झाड़ियों के बीच आगे बढ़ती जा रही थी। तुम पहले की तुलना में दुबला गई थी और मुझे बड़ी निरीह और अकेली सी लग रही थी। अबकी बार तुम पर नज़र पड़ते ही मेरे मन का सारा क्षोभ, बालू की भीत की भांति भुरभुरा कर गिर गया था। तुम इतनी दुबली, इतनी निसहाय सी लग रही थी कि मैं बेचैन हो उठा और अपने को धिक्कराने लगा। तुम्हारी सुनक सी काया कभी एक झाड़ी क़े पीछे तो कभी दूसरी झाड़ी क़े पीछे छिप जाती। आज भी तुम बालों में लाल रंग का फूल टांकना नहीं भूली थी।
स्त्रियाँ मन से झुब्ध और बेचैन रहते हुए भी, बन-संवर कर रहना नहीं भूलतीं। स्त्री मन से व्याकुल भी होगी तो भी साफ-सुथरे कपडे़ पहने, संवरे-संभले बाल, नख-शिख से दुरूस्त होकर बाहर निकलेगी। जबकि पुरूष, भाग्य का एक ही थपेड़ा खाने पर फूहड़ हो जाता है। बाल उलझे हुए, मुँह पर बढ़ती दाढ़ई, क़पडे़ मुचडे हए और आँखो में वीरानी लिए, भिखमंगों की तरह घर से बाहर निकलेगा। जिन दिनों हमारे बीच मनमुटाव होता और तुम अपने भाग्य को कोसती हुई घर से बाहर निकल जाती थी, तब भी ढंग के कपडे़ पहनना और चुस्त-दुरूस्त बन कर जाना नहीं भूलती थी। ऐसे दिनो में भी तुम बाहर आंगन में लगे गुलाब के पौधे में से छोटा सा लाल फूल बालों में टांकना नहीं भूलती थी। जबकि मैं दिन भर हांफता, किसी जानवर की तरह एक कमरे से दूसरे कमरे में चक्कर काटता रहता था।
तुम्हारी शॉल, तुम्हारे दायें कंधे पर से खिसक गई थी और उसका सिरा जमीन पर तुम्हारे पीछे-घिसटने लगा था, पर तुम्हें इसका भास नहीं हुआ क्योंकि तुम पहले की ही भांति धीरे-धीरे चलती जा रही थी, कंधे तनिक आगे को झुके हुए। कंधे पर से शॉल खिसक जाने से तुम्हारी सुडौल गर्दन और अधिक स्पष्ट नजर आने लगी थी। क्या मालूम तुम किन विचारों में खोयी चली जा रही हो। क्या मालूम हमारे बारे में, हमारे सम्बन्ध-विच्छेद के बारे में ही सोच रही हो। कौन जाने किसी अंत: प्रेरणावश, मुझे ही पार्क में मिल जाने की आशा लेकर तुम यहाँ चली आई हो। कौन जाने तुम्हारे दिल में भी ऐसी ही कसक ऐसी ही छटपटाहट उठी हो, जैसी मेरे दिल में। क्या मालूम भाग्य हम दोनों पर मेहरबान हो गया हो और नहीं तो मैं तुम्हारी आवाज तो सुन पाऊँगा, तुम्हे आँख भर देख तो पाऊँगा। अगर मैं इतना बेचैन हूँ तो तुम भी तो निपट अकेली हो और न जाने कहां भटक रही हो। आखिरी बार, सम्बन्ध- विच्छेद से पहले, तुम एकटक मेरी ओर देखती रही थी। तब तुम्हारी आँखें मुझे बड़ी-बड़ी सी लगी थीं, पर मैं उनका भाव नहीं समझ पाया था। तुम क्यों मेरी ओर देख रही थी और क्या सोच रही थी, क्यों नहीं तुमने मुँह से कुछ भी कहा? मुझे लगा था तुम्हारी सभी शिकायतें सिमट कर तुम्हारी आँखों के भाव में आ गए थे। तुम मुझे नि:स्पंद मूर्ति जैसी लगी थी, और उस शाम मानो तुमने मुझे छोड़ जाने का फैसला कर लिया था।
मैं नियमानुसार शाम को घूमने चला गया था। दिल और दिमाग पर भले ही कितना ही बोझ हो, मैं अपना नियम नहीं तोड़ता। लगभग डेढ घण्टे के बाद जब में घर वापस लौटा तो डयोढी में कदम रखते ही मुझे अपना घर सूना-सूना लगा था। और अन्दर जाने पर पता चलता कि तुम जा चुकी हो। तभी मुझे तुम्हारी वह एकटक नजर याद आई थी? मेरी ओर देखती हुई।
तुम्हें घर में न पाकर पहले तो मेरे आत्म-सम्मान को धक्का-सा लगा था कि तुम जाने से पहले न जाने क्या सोचती रही हो, अपने मन की बात मुँह तक नहीं लाई। पर शीघ्र ही उस वीराने घर में बैठा मैं मानो अपना सिर धुनने लगा था। घर भांय-भांय करने लगा था।
अब तुम धीरे-धीरे घास के मैदान को छोड़ कर चौड़ी पगडण्डी पर आ गई थी जो मकबरे की प्रदक्षिणा करती हुई-सी पार्क के प्रवेश द्वारा की ओर जाने वाले रास्ते से जा मिलती है। शीघ्र ही तुम चलती हुई पार्क के फाटक तक जा पहुँचोगी और आंखों से ओझल हो जाओगी।
तुम मकबरे का कोना काट कर उस चौकोर मैदान की ओर जाने लगी हो जहाँ बहुत से बेंच रखे रहते हैं और बड़ी उम्र के थके हारे लोग सुस्ताने के लिए बैठ जाते हैं।
कुछ दूर जाने के बाद तुम फिर से ठिठकी थी मोड़ आ गया था और मोड़ क़ाटने से पहले तुमने मुड़कर देखा था। क्या तुम मेरी ओर देख रही हो? क्या तुम्हें इस बात की आहट मिल गई है कि मैं पार्क में पहुँचा हुआ हूँ और धीरे-धीरे तुम्हारे पीछे चला आ रहा हूँ?
क्या सचमुच इसी कारण ठिठक कर खड़ी हो गई हो, इस अपेक्षा से कि मैं भाग कर तुम से जा मिलूँगा? क्या यह मेरा भ्रम ही है या तुम्हारा स्त्री-सुलभ संकोच कि तुम चाहते हुए भी मेरी ओर कदम नहीं बढ़ाओगी?
पर कुछ क्षण तक ठिठके रहने के बार तुम फिर से पार्क के फाटक की ओर बढ़ने लगी थी।
मैंने तुम्हारी और कदम बढ़ा दिए। मुझे लगा जैसे मेरे पास गिने-चुने कुछ क्षण ही रह गए हैं जब मैं तुमसे मिल सकता हूँ। अब नहीं मिल पाया तो कभी नहीं मिल पाऊँगा। और न जाने क्यों, यह सोच कर मेरा गला रूंधने लगा था।
पर मैं अभी भी कुछ ही कदम आगे की और बढ़ा पाया था कि जमीन पर किसी भागते साये ने मेरा रास्ता काट दिया। लम्बा-चौड़ा साया, तैरता हुआ सा, मेरे रास्ते को काट कर निकल गया था। मैंने नजर ऊपर उठाई और मेरा दिल बैठ गया। चील हमारे सिर के ऊपर मंडराए जा रही थी। क्या यह चील ही हैं? पर उसके डैने कितने बड़े हैं और पीली चोंच लम्बी, आगे को मुड़ी हुई। और उसकी छोटी-छोटी पैनी आँखों में भयावह सी चमक है।
चील आकाश में हमारे ऊपर चक्कर काटने लगी थी और उसका साया बार-बार मेरा रास्ता काट रहा था।
हाय, यह कहीं तुमपर न झपट पडे़। मैं बदहवस सा तुम्हारी ओर दौड़ने लगा, मन चाहा, चिल्ला कर तुम्हें सावधान कर दूँ, पर डैने फैलाये चील को मंडराता देख कर मैं इतना त्रस्त हो उठा था कि मुँह में से शब्द निकल नहीं पा रहे थे। मेरा गला सूख रहा था और पांव बोझिल हो रहे थे। मैं जल्दी तुम तक पहुँचना चाहता था मुझे लगा जैसे मैं साये को लांघ ही नहीं पा रहा हूँ। चील जरूर नीचे आने लगी होगी। जो उसका साया इतना फैलता जा रहा है कि मैं उसे लांघ ही नहीं सकता।
मेरे मस्तिष्क में एक ही वाक्य बार-बार घूम रहा था, कि तुम्हें उस मंडराती चील के बारे में सावधान कर दूँ और तुमसे कहूँ कि जितनी जल्दी पार्क में से निकल सकती हो, निकल जाओ।
मेरी सांस धौंकनी की तरह चलने लगी थी, और मुँह से एक शब्द भी नहीं फूट पा रहा था।
बाहर जाने वाले फाटक से थोड़ा हटकर, दायें हाथ एक ऊँचा सा मुनारा है जिस पर कभी मकबरे की रखवाली करनेवाला पहरेदार खड़ा रहता होगा। अब वह मुनार भी टूटी-फूटी हालत में है।
जिस समय मैं साये को लांघ पाने को भरसक चेष्टा कर रहा था उस समय मुझे लगा था जैसे तुम चलती हुई उस मुनारे के पीछे जा पहुँची हो, क्षण भर के लिए मैं आश्वस्त सा हो गया। तुम्हें अपने सिर के ऊपर मंडराते खतरे का आभास हो गया होगा। न भी हुआ हो तो भी तुमने बाहर निकलने का जो रास्ता अपनाया था, वह अधिक सुरक्षित था।
मैं थक गया था। मेरी सांस बुरी तरह से फूली हुई थी। लाचार, मैं उसी मुनारे के निकट एक पत्थर पर हांफता हुआ बैठ गया। कुछ भी मेरे बस नहीं रह गया था। पर मैं सोच रहा था कि ज्योंही तुम मुनारे के पीछे से निकल कर सामने आओगी, मैं चिल्ला कर तुम्हें पार्क में से निकल भागने का आग्रह करूँगा। चील अब भी सिर पर मंडराये जा रही थी।
तभी मुझे लगा तुम मुनारे के पीछे से बाहर आई हो। हवा के झोंके से तुम्हारी साड़ी क़ा पल्लू और हवा में अठखेली सी करती हुई तुम सीधा फाटक की ओर बढ़ने लगी हो।
'शोभा!' मैं चिल्लाया।
पर तुम बहुत आगे बढ़ चुकी थी, लगभग फाटक के पास पहुँच चुकी थी। तुम्हारी साड़ी क़ा पल्लू अभी भी हवा में फरफरा रहा थ। बालों में लाल फूल बड़ा खिला-खिला लग रहा था।
मैं उठ खड़ा हुआ और जैसे तैसे कदम बढ़ता हुआ तुम्हारी ओर जाने लगा। मैं तुमसे कहना चाहता था, 'अच्छा हुआ जो तुम चील के पंजों से बच कर निकल गई हो, शोभा।'
फाटक के पास तुम रूकी थी, और मुझे लगा था जैसे मेरी ओर देख कर मुस्कराई हो और फिर पीठ मोड़ ली थी और आँखों से ओझल हो गई थी।
मैं भागता हुआ फाटक के पास पहुँचा था। फाटक के पास मैदान में हल्की-हल्की धूल उड़ रही थी और पार्क में आने वाले लोगों के लिए चौड़ा, खुला रास्ता भांय-भांय कर रहा था।
तुम पार्क में से सही सलामत निकल गई हो, यह सोच कर मैं आश्वस्त सा महसूस करने लगा था। मैंने नजर उठा कर ऊपर की ओर देखा। चील वहाँ पर नहीं था। चील जा चुकी थी। आसमान साफ था और हल्की-हल्की धुंध के बावजूद उसकी नीलिमा जैसे लौट आई थी।
- समाप्त -

पाकिस्तान में जन्मे भीष्म साहनी आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक थे।

वैराग्य -मुँशी प्रेमचँद

मुँशी शालिग्राम बनारस के पुराने रईस थे। जीवन-वृति वकालत थी और पैतृक सम्पत्ति भी अधिक थी। दशाश्वमेध घाट पर उनका वैभवान्वित गृह आकाश को स्पर्श करता था। उदार ऐसे कि पचीस-तीस हजार की वाषिर्क आय भी व्यय को पूरी न होती थी। साधु-ब्राहमणों के बड़े श्रद्वावान थे। वे जो कुछ कमाते, वह स्वयं ब्रह्रमभोज और साधुओं के भंडारे एवं सत्यकार्य में व्यय हो जाता। नगर में कोई साधु-महात्मा आ जाये, वह मुंशी जी का अतिथि। संस्कृत के ऐसे विद्वान कि बड़े-बड़े पंडित उनका लोहा मानते थे वेदान्तीय सिद्वान्तों के वे अनुयायी थे। उनके चित्त की प्रवृति वैराग्य की ओर थी।

मुंशीजी को स्वभावत: बच्चों से बहुत प्रेम था। मुहल्ले-भर के बच्चे उनके प्रेम-वारि से अभिसिंचित होते रहते थे। जब वे घर से निकलते थे तब बालाकों का एक दल उसके साथ होता था। एक दिन कोई पाषाण-हृदय माता अपने बच्वे को मार थी। लड़का बिलख-बिलखकर रो रहा था। मुंशी जी से न रहा गया। दौड़े, बच्चे को गोद में उठा लिया और स्त्री के सम्मुख अपना सिर झुक दिया। स्त्री ने उस दिन से अपने लड़के को न मारने की शपथ खा ली जो मनुष्य दूसरो के बालकों का ऐसा स्नेही हो, वह अपने बालक को कितना प्यार करेगा, सो अनुमान से बाहर है। जब से पुत्र पैदा हुआ, मुंशी जी संसार के सब कार्यो से अलग हो गये। कहीं वे लड़के को हिंडोल में झुला रहे हैं और प्रसन्न हो रहे हैं। कहीं वे उसे एक सुन्दर सैरगाड़ी में बैठाकर स्वयं खींच रहे हैं। एक क्षण के लिए भी उसे अपने पास से दूर नहीं करते थे। वे बच्चे के स्नेह में अपने को भूल गये थे।

सुवामा ने लड़के का नाम प्रतापचन्द्र रखा था। जैसा नाम था वैसे ही उसमें गुण भी थे। वह अत्यन्त प्रतिभाशाली और रुपवान था। जब वह बातें करता, सुनने वाले मुग्ध हो जाते। भव्य ललाट दमक-दमक करता था। अंग ऐसे पुष्ट कि द्विगुण डीलवाले लड़कों को भी वह कुछ न समझता था। इस अल्प आयु ही में उसका मुख-मण्डल ऐसा दिव्य और ज्ञानमय था कि यदि वह अचानक किसी अपरिचित मनुष्य के सामने आकर खड़ा हो जाता तो वह विस्मय से ताकने लगता था।

इस प्रकार हंसते-खेलते छ: वर्ष व्यतीत हो गये। आनंद के दिन पवन की भांति सन्न-से निकल जाते हैं और पता भी नहीं चलता। वे दुर्भाग्य के दिन और विपत्ति की रातें हैं, जो काटे नहीं कटतीं। प्रताप को पैदा हुए अभी कितने दिन हुए। बधाई की मनोहारिणी ध्वनि कानों मे गूंज रही थी छठी वर्षगांठ आ पहुंची। छठे वर्ष का अंत दुर्दिनों का श्रीगणेश था। मुंशी शालिग्राम का सांसारिक सम्बन्ध केवल दिखावटी था। वह निष्काम और निस्सम्बद्व जीवन व्यतीत करते थे। यद्यपि प्रकट वह सामान्य संसारी मनुष्यों की भांति संसार के क्लेशों से क्लेशित और सुखों से हर्षित दृष्टिगोचर होते थे, तथापि उनका मन सर्वथा उस महान और आनन्दपूर्व शांति का सुख-भोग करता था, जिस पर दु:ख के झोंकों और सुख की थपकियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

माघ का महीना था। प्रयाग में कुम्भ का मेला लगा हुआ था। रेलगाड़ियों में यात्री रुई की भांति भर-भरकर प्रयाग पहुंचाये जाते थे। अस्सी-अस्सी बरस के वृद्व-जिनके लिए वर्षो से उठना कठिन हो रहा था- लंगड़ाते, लाठियां टेकते मंजिल तै करके प्रयागराज को जा रहे थे। बड़े-बड़े साधु-महात्मा, जिनके दर्शनो की इच्छा लोगों को हिमालय की अंधेरी गुफाओं में खींच ले जाती थी, उस समय गंगाजी की पवित्र तरंगों से गले मिलने के लिए आये हुए थे। मुंशी शालिग्राम का भी मन ललचाया। सुवाम से बोले- कल स्नान है।

सुवामा - सारा मुहल्ला सूना हो गया। कोई मनुष्य नहीं दीखता।

मुंशी - तुम चलना स्वीकार नहीं करती, नहीं तो बड़ा आनंद होता। ऐसा मेला तुमने कभी नहीं देखा होगा।
सुवामा - ऐसे मेला से मेरा जी घबराता है।

मुंशी - मेरा जी तो नहीं मानता। जब से सुना कि स्वामी परमानन्द जी आये हैं तब से उनके दर्शन के लिए चित्त उद्विग्न हो रहा है।

सुवामा पहले तो उनके जाने पर सहमत न हुई, पर जब देखा कि यह रोके न रुकेंगे, तब विवश होकर मान गयी। उसी दिन मुंशी जी ग्यारह बजे रात को प्रयागराज चले गये। चलते समय उन्होंने प्रताप के मुख का चुम्बन किया और स्त्री को प्रेम से गले लगा लिया। सुवामा ने उस समय देखा कि उनके नेञ सजल हैं। उसका कलेजा धक से हो गया। जैसे चैत्र मास में काली घटाओं को देखकर कृषक का हृदय कॉंपने लगता है, उसी भाती मुंशीजी ने नेत्रों का अश्रुपूर्ण देखकर सुवामा कम्पित हुई। अश्रु की वे बूंदें वैराग्य और त्याग का अगाघ समुद्र थीं। देखने में वे जैसे नन्हे जल के कण थीं, पर थीं वे कितनी गंभीर और विस्तीर्ण।

उधर मुंशी जी घर के बाहर निकले और इधर सुवामा ने एक ठंडी श्वास ली। किसी ने उसके हृदय में यह कहा कि अब तुझे अपने पति के दर्शन न होंगे। एक दिन बीता, दो दिन बीते, चौथा दिन आया और रात हो गयी, यहा तक कि पूरा सप्ताह बीत गया, पर मुंशी जी न आये। तब तो सुवामा को आकुलता होने लगी। तार दिये, आदमी दौड़ाये, पर कुछ पता न चला। दूसरा सप्ताह भी इसी प्रयत्न में समाप्त हो गया। मुंशी जी के लौटने की जो कुछ आशा शेष थी, वह सब मिट्टी में मिल गयी। मुंशी जी का अदृश्य होना उनके कुटुम्ब मात्र के लिए ही नहीं, वरन सारे नगर के लिए एक शोकपूर्ण घटना थी। हाटों में दुकानों पर, हथाइयो में अर्थात चारों और यही वार्तालाप होता था। जो सुनता, वही शोक करता- क्या धनी, क्या निर्धन। यह शौक सबको था। उसके कारण चारों और उत्साह फैला रहता था। अब एक उदासी छा गयी। जिन गलियों से वे बालकों का झुण्ड लेकर निकलते थे, वहां अब धूल उड़ रही थी। बच्चे बराबर उनके पास आने के लिए रोते और हठ करते थे। उन बेचारों को यह सुध कहां थी कि अब प्रमोद सभा भंग हो गयी है। उनकी माताएं ऑंचल से मुख ढांप-ढांपकर रोतीं मानों उनका सगा प्रेमी मर गया है।

वैसे तो मुंशी जी के गुप्त हो जाने का रोना सभी रोते थे। परन्तु सब से गाढ़े आंसू, उन आढतियों और महाजनों के नेत्रों से गिरते थे, जिनके लेने-देने का लेखा अभी नहीं हुआ था। उन्होंने दस-बारह दिन जैसे-जैसे करके काटे, पश्चात एक-एक करके लेखा के पत्र दिखाने लगे। किसी ब्रहृनभोज मे सौ रुपये का घी आया है और मूल्य नहीं दिया गया। कही से दो-सौ का मैदा आया हुआ है। बजाज का सहस्रों का लेखा है। मन्दिर बनवाते समय एक महाजन के बीस सहस्र ऋण लिया था, वह अभी वैसे ही पड़ा हुआ है लेखा की तो यह दशा थी। सामग्री की यह दशा कि एक उत्तम गृह और तत्सम्बन्धिनी सामग्रियों के अतिरिक्त कोई वस्त न थी, जिससे कोई बड़ी रकम खड़ी हो सके। भू-सम्पत्ति बेचने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय न था, जिससे धन प्राप्त करके ऋण चुकाया जाए।

बेचारी सुवामा सिर नीचा किए हुए चटाई पर बैठी थी और प्रतापचन्द्र अपने लकड़ी के घोड़े पर सवार आंगन में टख-टख कर रहा था कि पण्डित मोटेराम शास्त्री - जो कुल के पुरोहित थे - मुस्कराते हुए भीतर आये। उन्हें प्रसन्न देखकर निराश सुवामा चौंककर उठ बैठी कि शायद यह कोई शुभ समाचार लाये हैं। उनके लिए आसन बिछा दिया और आशा-भरी दृष्टि से देखने लगी। पण्डितजी आसान पर बैठे और सुंघनी सूंघते हुए बोले तुमने महाजनों का लेखा देखा?

सुवामा ने निराशापूर्ण शब्दों में कहा-हां, देखा तो।

मोटेराम-रकम बड़ी गहरी है। मुंशीजी ने आगा-पीछा कुछ न सोचा, अपने यहां कुछ हिसाब-किताब न रखा।
सुवामा-हां अब तो यह रकम गहरी है, नहीं तो इतने रुपये क्या, एक-एक भोज में उठ गये हैं।
मोटेराम-सब दिन समान नहीं बीतते।

सुवामा-अब तो जो ईश्वर करेगा सो होगा, क्या कर सकती हूं।

मोटेराम- हां ईश्वर की इच्छा तो मूल ही है, मगर तुमने भी कुछ सोचा है ?

सुवामा-हां गांव बेच डालूंगी।

मोटेराम-राम-राम। यह क्या कहती हो ? भूमि बिक गयी, तो फिर बात क्या रह जायेगी?

मोटेराम- भला, पृथ्वी हाथ से निकल गयी, तो तुम लोगों का जीवन निर्वाह कैसे होगा?

सुवामा-हमारा ईश्वर मालिक है। वही बेड़ा पार करेगा।

मोटेराम यह तो बड़े अफसोस की बात होगी कि ऐसे उपकारी पुरुष के लड़के-बाले दु:ख भोगें।

सुवामा-ईश्वर की यही इच्छा है, तो किसी का क्या बस?

मोटेराम-भला, मैं एक युक्ति बता दूं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

सुवामा- हां, बतलाइए बड़ा उपकार होगा।

मोटेराम-पहले तो एक दरख्वास्त लिखवाकर कलक्टर साहिब को दे दो कि मालगुलारी माफ की जाये। बाकी रुपये का बन्दोबस्त हमारे ऊपर छोड दो। हम जो चाहेंगे करेंगे, परन्तु इलाके पर आंच ना आने पायेगी।

सुवामा-कुछ प्रकट भी तो हो, आप इतने रुपये कहां से लायेंगी?

मोटेराम- तुम्हारे लिए रुपये की क्या कमी है? मुंशी जी के नाम पर बिना लिखा-पढ़ी के पचास हजार रुपये का बन्दोस्त हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। सच तो यह है कि रुपया रखा हुआ है, तुम्हारे मुंह से ‘हां’ निकलने की देरी है।

सुवामा- नगर के भद्र-पुरुषों ने एकत्र किया होगा?

मोटेराम- हां, बात-की-बात में रुपया एकत्र हो गया। साहब का इशारा बहुत था।

सुवामा-कर-मुक्ति के लिए प्रार्थना-पञ मुझसे न लिखवाया जाएगा और मैं अपने स्वामी के नाम ऋण ही लेना चाहती हूं। मैं सबका एक-एक पैसा अपने गांवों ही से चुका दूंगी।

यह कहकर सुवामा ने रुखाई से मुंह फेर लिया और उसके पीले तथा शोकान्वित बदन पर क्रोध-सा झलकने लगा। मोटेराम ने देखा कि बात बिगड़ना चाहती है, तो संभलकर बोले- अच्छा, जैसे तुम्हारी इच्छा। इसमें कोई जबरदस्ती नहीं है। मगर यदि हमने तुमको किसी प्रकार का दु:ख उठाते देखा, तो उस दिन प्रलय हो जायेगा। बस, इतना समझ लो।

सुवामा-तो आप क्या यह चाहते हैं कि मैं अपने पति के नाम पर दूसरों की कृतज्ञता का भार रखूं? मैं इसी घर में जल मरुंगी, अनशन करते-करते मर जाऊंगी, पर किसी की उपकृत न बनूंगी।

मोटेराम-छि:छि:। तुम्हारे ऊपर निहोरा कौन कर सकता है? कैसी बात मुख से निकालती है? ऋण लेने में कोई लाज नहीं है। कौन रईस है जिस पर लाख दो-लाख का ऋण न हो?

सुवामा- मुझे विश्वास नहीं होता कि इस ऋण में निहोरा है।

मोटेराम- सुवामा, तुम्हारी बुद्वि कहां गयी? भला, सब प्रकार के दु:ख उठा लोगी पर क्या तुम्हें इस बालक पर दया नहीं आती?

मोटेराम की यह चोट बहुत कड़ी लगी। सुवामा सजलनयना हो गई। उसने पुत्र की ओर करुणा-भरी दृष्टि से देखा। इस बच्चे के लिए मैंने कौन-कौन सी तपस्या नहीं की? क्या उसके भाग्य में दु:ख ही बदा है। जो अमोला जलवायु के प्रखर झोंकों से बचाता जाता था, जिस पर सूर्य की प्रचण्ड किरणें न पड़ने पाती थीं, जो स्नेह-सुधा से अभी सिंचित रहता था, क्या वह आज इस जलती हुई धूप और इस आग की लपट में मुरझायेगा? सुवामा कई मिनट तक इसी चिन्ता में बैठी रही। मोटेराम मन-ही-मन प्रसन्न हो रहे थे कि अब सफलीभूत हुआ। इतने में सुवामा ने सिर उठाकर कहा-जिसके पिता ने लाखों को जिलाया-खिलाया, वह दूसरों का आश्रित नहीं बन सकता। यदि पिता का धर्म उसका सहायक होगा, तो स्वयं दस को खिलाकर खायेगा। लड़के को बुलाते हुए ‘बेटा। तनिक यहां आओ। कल से तुम्हारी मिठाई, दूध, घी सब बन्द हो जायेंगे। रोओगे तो नहीं?’ यह कहकर उसने बेटे को प्यार से बैठा लिया और उसके गुलाबी गालों का पसीना पोंछकर चुम्बन कर लिया।

प्रताप- क्या कहा? कल से मिठाई बन्द होगी? क्यों क्या हलवाई की दुकान पर मिठाई नहीं है?

सुवामा-मिठाई तो है, पर उसका रुपया कौन देगा?

प्रताप- हम बड़े होंगे, तो उसको बहुत-सा रुपया देंगे। चल, टख। टख। देख मां, कैसा तेज घोड़ा है।

सुवामा की आंखों में फिर जल भर आया। ‘हा हन्त। इस सौन्दर्य और सुकुमारता की मूर्ति पर अभी से दरिद्रता की आपत्तियां आ जायेंगी। नहीं नहीं, मैं स्वयं सब भोग लूंगी। परन्तु अपने प्राण-प्यारे बच्चे के ऊपर आपत्ति की परछाहीं तक न आने दूंगी।’ माता तो यह सोच रही थी और प्रताप अपने हठी और मुंहजोर घोड़े पर चढ़ने में पूर्ण शक्ति से लीन हो रहा था। बच्चे मन के राजा होते हैं।

अभिप्राय यह कि मोटेराम ने बहुत जाल फैलाया। विविध प्रकार का वाक्चातुर्य दिखलाया, परन्तु सुवामा ने एक बार ‘नहीं करके ‘हां’ न की। उसकी इस आत्मरक्षा का समाचार जिसने सुना, धन्य-धन्य कहा। लोगों के मन में उसकी प्रतिष्टा दूनी हो गयी। उसने वही किया, जो ऐसे संतोषपूर्ण और उदार-हृदय मनुष्य की स्त्री को करना उचित था।
इसके पन्द्रहवें दिन इलाका नीलामा पर चढ़ा। पचास सहस्र रुपये प्राप्त हुए कुल ऋण चुका दिया गया। घर का अनावश्यक सामान बेच दिया गया। मकान में भी सुवामा ने भीतर से ऊंची-ऊंची दीवारें खिंचवा कर दो अलग-अलग खण्ड कर दिये। एक में आप रहने लगी और दूसरा भाड़े पर उठा दिया।

Friday, February 19, 2010

BEST internet browsing

In IE, typing in google, and then pressing CTRL+Enter fills in the www, and the .com, and if you use Firefox,
Ctrl+Shift+Enter adds .org, and Shift-Enter fills in .net!!

Additional:

ALT+SPACEBAR (Open the shortcut menu for the active window)
ALT+SPACEBAR (Display the System menu for the active window)
ALT+SPACEBAR + N = Shrink (minimize) current window
ALT+SPACEBAR + X = Maximize current window
ALT+SPACEBAR + M = Move current windows with arrow keys

Internet Explorer navigation

CTRL+B (Open the Organize Favorites dialog box)
CTRL+E (Open the Search bar)
CTRL+F (Start the Find utility)
CTRL+H (Open the History bar)
CTRL+I (Open the Favorites bar)
CTRL+L (Open the Open dialog box)
CTRL+N (Start another instance of the browser with the same Web address)
CTRL+O (Open the Open dialog box, the same as CTRL+L)
CTRL+P (Open the Print dialog box)
CTRL+R (Update the current Web page)
CTRL+W (Close the current window)

Capturing screen shots

Print Scr - Captures the current desktop to the clipboard as an image.
ALT+Print Scr - Captures the currently active window to the clipboard as an image.

Remote Desktop Navigation

CTRL+ALT+END (Open the m*cro$oft Windows NT Security dialog box)
ALT+PAGE UP (Switch between programs from left to right)
ALT+PAGE DOWN (Switch between programs from right to left)
ALT+INSERT (Cycle through the programs in most recently used order)
ALT+HOME (Display the Start menu)
CTRL+ALT+BREAK (Switch the client computer between a window and a full screen)
ALT+DELETE (Display the Windows menu)
CTRL+ALT+Minus sign (-) (Place a snapshot of the active window in the client on the Terminal server
clipboard and provide the same functionality as pressing PRINT SCREEN on a local computer.)
CTRL+ALT+Plus sign (+) (Place a snapshot of the entire client window area on the Terminal server
clipboard and provide the same functionality as pressing ALT+PRINT SCREEN on a local computer.)

Microsoft Management Console

CTRL+O (Open a saved console)
CTRL+N (Open a new console)
CTRL+S (Save the open console)
CTRL+M (Add or remove a console item)
CTRL+W (Open a new window)
F5 key (Update the content of all console windows)
ALT+SPACEBAR (Display the MMC window menu)
ALT+F4 (Close the console)
ALT+A (Display the Action menu)
ALT+V (Display the View menu)
ALT+F (Display the File menu)
ALT+O (Display the Favorites menu)
MMC Console Window Keyboard Shortcuts
CTRL+P (Print the current page or active pane)
ALT+Minus sign (-) (Display the window menu for the active console window)
SHIFT+F10 (Display the Action shortcut menu for the selected item)
F1 key (Open the Help topic, if any, for the selected item)
F5 key (Update the content of all console windows)
CTRL+F10 (Maximize the active console window)
CTRL+F5 (Restore the active console window)
ALT+ENTER (Display the Properties dialog box, if any, for the selected item)
F2 key (Rename the selected item)
CTRL+F4 (Close the active console window. When a console has only one console window, this shortcut
closes the console)

Windows Explorer Shortcuts

END (Display the bottom of the active window)
HOME (Display the top of the active window)
NUM LOCK+Asterisk sign (*) (Display all of the subfolders that are under the selected folder)
NUM LOCK+Plus sign (+) (Display the contents of the selected folder)
NUM LOCK+Minus sign (-) (Collapse the selected folder)
LEFT ARROW (Collapse the current selection if it is expanded, or select the parent folder)
RIGHT ARROW (Display the current selection if it is collapsed, or select the first subfolder)

Accessibility Keyboard Shortcuts

Right SHIFT for eight seconds (Switch FilterKeys either on or off)
Left ALT+left SHIFT+PRINT SCREEN (Switch High Contrast either on or off)
Left ALT+left SHIFT+NUM LOCK (Switch the MouseKeys either on or off)
SHIFT five times (Switch the StickyKeys either on or off)
NUM LOCK for five seconds (Switch the ToggleKeys either on or off)
Windows Logo +U (Open Utility Manager)

Microsoft Keyboard Shortcuts

Windows Logo (Display or hide the Start menu)
Windows Logo+BREAK (Display the System Properties dialog box)
Windows Logo+D (Display the desktop)
Windows Logo+M (Minimize all of the windows)
Windows Logo+SHIFT+M (Restore the minimized windows)
Windows Logo+E (Open My Computer)
Windows Logo+F (Search for a file or a folder)
CTRL+Windows Logo+F (Search for computers)
Windows Logo+F1 (Display Windows Help)
Windows Logo+ L (Lock the keyboard)
Windows Logo+R (Open the Run dialog box)
Windows Logo+U (Open Utility Manager)

ShortCuts

Microsoft windows keyboard shortcuts. You might know most of these shortcuts, but I'm guessing a few may
be new to you.
CTRL+C (Copy)
CTRL+X (Cut)
CTRL+V (Paste)
CTRL+Z (Undo)
DELETE (Delete)
SHIFT+DELETE (Delete the selected item permanently without placing the item in the Recycle Bin)
CTRL while dragging an item (Copy the selected item)
CTRL+SHIFT while dragging an item (Create a shortcut to the selected item)
F2 key (Rename the selected item)
CTRL+RIGHT ARROW (Move the insertion point to the beginning of the next word)
CTRL+LEFT ARROW (Move the insertion point to the beginning of the previous word)
CTRL+DOWN ARROW (Move the insertion point to the beginning of the next paragraph)
CTRL+UP ARROW (Move the insertion point to the beginning of the previous paragraph)
CTRL+SHIFT with any of the arrow keys (Highlight a block of text)
SHIFT with any of the arrow keys (Select more than one item in a window or on the desktop, or select text
in a document)
CTRL+A (Select all)
F3 key (Search for a file or a folder)
ALT+ENTER (View the properties for the selected item)
ALT+F4 (Close the active item, or quit the active program)
ALT+ENTER (Display the properties of the selected object)
ALT+SPACEBAR (Open the shortcut menu for the active window)
CTRL+F4 (Close the active document in programs that enable you to have multiple documents open
simultaneously)
ALT+TAB (Switch between the open items)
ALT+ESC (Cycle through items in the order that they had been opened)
F6 key (Cycle through the screen elements in a window or on the desktop)
F4 key (Display the Address bar list in My Computer or Windows Explorer)
SHIFT+F10 (Display the shortcut menu for the selected item)
ALT+SPACEBAR (Display the System menu for the active window)
CTRL+ESC (Display the Start menu)
ALT+Underlined letter in a menu name (Display the corresponding menu)
Underlined letter in a command name on an open menu (Perform the corresponding command)
F10 key (Activate the menu bar in the active program)
RIGHT ARROW (Open the next menu to the right, or open a submenu)
LEFT ARROW (Open the next menu to the left, or close a submenu)
F5 key (Update the active window)
BACKSPACE (View the folder one level up in My Computer or Windows Explorer)
ESC (Cancel the current task)
SHIFT when you insert a CD-ROM into the CD-ROM drive (Prevent the CD-ROM from automatically
playing)
Dialog Box Keyboard Shortcuts
CTRL+TAB (Move forward through the tabs)
CTRL+SHIFT+TAB (Move backward through the tabs)
TAB (Move forward through the options)
SHIFT+TAB (Move backward through the options)
ALT+Underlined letter (Perform the corresponding command or select the corresponding option)
ENTER (Perform the command for the active option or button)
SPACEBAR (Select or clear the check box if the active option is a check box)
Arrow keys (Select a button if the active option is a group of option buttons)
F1 key (Display Help)
F4 key (Display the items in the active list)
BACKSPACE (Open a folder one level up if a folder is selected in the Save As or Open dialog box)

Quick run command

accessibility Controls....access.cpl
Add Hardware Wizard....hdwwiz.cpl
Add/Remove Programs....appwiz.cpl
Administrative Tools....control.exe admintools
Automatic Updates....wuaucpl.cpl
Bluetooth Transfer Wizard....fsquirt
Calculator....calc
Certificate Manager....certmgr.msc
Character Map....charmap
Check Disk Utility....chkdsk
Clipboard Viewer....clipbrd
Command Prompt....cmd
Component Services....dcomcnfg
Computer Management....compmgmt.msc
Date and Time Properties....timedate.cpl
DDE Shares....ddeshare
Device Manager....devmgmt.msc
Direct X Control Panel (if installed)*....directx.cpl
Direct X Troubleshooter....dxdiag
Disk Cleanup Utility....cleanmgr
Disk Defragment....dfrg.msc
Disk Management....diskmgmt.msc
Disk Partition Manager....diskpart
Display Properties....control.exe desktop
Display Properties....desk.cpl
Display Properties (w/Appearance Tab Preselected)....control.exe color
Dr. Watson System Troubleshooting Utility....drwtsn32
Driver Verifier Utility....verifier
Event Viewer....eventvwr.msc
File Signature Verification Tool....sigverif
Findfast....findfast.cpl
Folders Properties....control.exe folders
Fonts....control.exe fonts
Fonts Folder....fonts
Free Cell Card Game....freecell
Game Controllers....joy.cpl
Group Policy Editor (XP Prof)....gpedit.msc
Hearts Card Game....mshearts
Iexpress Wizard....iexpress
Indexing Service....ciadv.msc
Internet Properties....inetcpl.cpl
Java Control Panel (if installed)....jpicpl32.cpl
Java Control Panel (if installed)....javaws
Keyboard Properties....control.exe keyboard
Local Security Settings....secpol.msc
Local Users and Groups....lusrmgr.msc
Logs You Out Of Windows....logoff
Microsoft Chat....winchat
Minesweeper Game....winmine
Mouse Properties....control.exe mouse
Mouse Properties....main.cpl
Network Connections....control.exe netconnections
Network Connections....ncpa.cpl
Network Setup Wizard....netsetup.cpl
Nview Desktop Manager (if installed)....nvtuicpl.cpl
Object Packager....packager
ODBC Data Source Administrator....odbccp32.cpl
On Screen Keyboard....osk
Opens AC3 Filter (if installed)....ac3filter.cpl
Password Properties....password.cpl
Performance Monitor....perfmon.msc
Performance Monitor....perfmon
Phone and Modem Options....telephon.cpl
Power Configuration....powercfg.cpl
Printers and Faxes....control.exe printers
Printers Folder....printers
Private Character Editor....eudcedit
Quicktime (If Installed)....QuickTime.cpl
Regional Settings....intl.cpl
Registry Editor....regedit
Registry Editor....regedit32
Removable Storage....ntmsmgr.msc
Removable Storage Operator Requests....ntmsoprq.msc
Resultant Set of Policy....rsop.msc
Resultant Set of Policy (XP Prof)....rsop.msc
Scanners and Cameras....sticpl.cpl
Scheduled Tasks....control.exe schedtasks
Security Center....wscui.cpl
Services....services.msc
Shared Folders....fsmgmt.msc
Shuts Down Windows....shutdown
Sounds and Audio....mmsys.cpl
Spider Solitare Card Game....spider
SQL Client Configuration....cliconfg
System Configuration Editor....sysedit
System Configuration Utility....msconfig
System File Checker Utility....sfc
System Properties....sysdm.cpl
Task Manager....taskmgr
Telnet Client....telnet
User Account Management....nusrmgr.cpl
Utility Manager....utilman
Windows Firewall....firewall.cpl
Windows Magnifier....magnify
Windows Management Infrastructure....wmimgmt.msc
Windows System Security Tool....syskey
Windows Update Launches....wupdmgr
Windows XP Tour Wizard....tourstart
Wordpad....write

Thursday, February 18, 2010

काबुलीवाला

मेरी पाँच बरस की लड़की मिनी से घड़ीभर भी बोले बिना नहीं रहा जाता। एक दिन वह सवेरे-सवेरे ही बोली, "बाबूजी, रामदयाल दरबान है न, वह ‘काक’ को ‘कौआ’ कहता है। वह कुछ जानता नहीं न, बाबूजी।" मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने दूसरी बात छेड़ दी। "देखो, बाबूजी, भोला कहता है – आकाश में हाथी सूँड से पानी फेंकता है, इसी से वर्षा होती है। अच्छा बाबूजी, भोला झूठ बोलता है, है न?" और फिर वह खेल में लग गई।




मेरा घर सड़क के किनारे है। एक दिन मिनी मेरे कमरे में खेल रही थी। अचानक वह खेल छोड़कर खिड़की के पास दौड़ी गई और बड़े ज़ोर से चिल्लाने लगी, "काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले!"



कँधे पर मेवों की झोली लटकाए, हाथ में अँगूर की पिटारी लिए एक लंबा सा काबुली धीमी चाल से सड़क पर जा रहा था। जैसे ही वह मकान की ओर आने लगा, मिनी जान लेकर भीतर भाग गई। उसे डर लगा कि कहीं वह उसे पकड़ न ले जाए। उसके मन में यह बात बैठ गई थी कि काबुलीवाले की झोली के अंदर तलाश करने पर उस जैसे और भी

दो-चार बच्चे मिल सकते हैं।



काबुली ने मुसकराते हुए मुझे सलाम किया। मैंने उससे कुछ सौदा खरीदा। फिर वह बोला, "बाबू साहब, आप की लड़की कहाँ गई?"



मैंने मिनी के मन से डर दूर करने के लिए उसे बुलवा लिया। काबुली ने झोली से किशमिश और बादाम निकालकर मिनी को देना चाहा पर उसने कुछ न लिया। डरकर वह मेरे घुटनों से चिपट गई। काबुली से उसका पहला परिचय इस तरह हुआ। कुछ दिन बाद, किसी ज़रुरी काम से मैं बाहर जा रहा था। देखा कि मिनी काबुली से खूब बातें कर रही है और काबुली मुसकराता हुआ सुन रहा है। मिनी की झोली बादाम-किशमिश से भरी हुई थी। मैंने काबुली को अठन्नी देते हुए कहा, "इसे यह सब क्यों दे दिया? अब मत देना।" फिर मैं बाहर चला गया।



कुछ देर तक काबुली मिनी से बातें करता रहा। जाते समय वह अठन्नी मिनी की झोली में डालता गया। जब मैं घर लौटा तो देखा कि मिनी की माँ काबुली से अठन्नी लेने के कारण उस पर खूब गुस्सा हो रही है।



काबुली प्रतिदिन आता रहा। उसने किशमिश बादाम दे-देकर मिनी के छोटे से ह्रदय पर काफ़ी अधिकार जमा लिया था। दोनों में बहुत-बहुत बातें होतीं और वे खूब हँसते। रहमत काबुली को देखते ही मेरी लड़की हँसती हुई पूछती, "काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले! तुम्हारी झोली में क्या है?"



रहमत हँसता हुआ कहता, "हाथी।" फिर वह मिनी से कहता, "तुम ससुराल कब जाओगी?"



इस पर उलटे वह रहमत से पूछती, "तुम ससुराल कब जाओगे?"



रहमत अपना मोटा घूँसा तानकर कहता, "हम ससुर को मारेगा।" इस पर मिनी खूब हँसती।



हर साल सरदियों के अंत में काबुली अपने देश चला जाता। जाने से पहले वह सब लोगों से पैसा वसूल करने में लगा रहता। उसे घर-घर घूमना पड़ता, मगर फिर भी प्रतिदिन वह मिनी से एक बार मिल जाता।



एक दिन सवेरे मैं अपने कमरे में बैठा कुछ काम कर रहा था। ठीक उसी समय सड़क पर बड़े ज़ोर का शोर सुनाई दिया। देखा तो अपने उस रहमत को दो सिपाही बाँधे लिए जा रहे हैं। रहमत के कुर्ते पर खून के दाग हैं और सिपाही के हाथ में खून से सना हुआ छुरा।



कुछ सिपाही से और कुछ रहमत के मुँह से सुना कि हमारे पड़ोस में रहने वाले एक आदमी ने रहमत से एक चादर खरीदी। उसके कुछ रुपए उस पर बाकी थे, जिन्हें देने से उसने इनकार कर दिया था। बस, इसी पर दोनों में बात बढ़ गई, और काबुली ने उसे छुरा मार दिया।



इतने में "काबुलीवाले, काबुलीवाले", कहती हुई मिनी घर से निकल आई। रहमत का चेहरा क्षणभर के लिए खिल उठा। मिनी ने आते ही पूछा, ‘’तुम ससुराल जाओगे?" रहमत ने हँसकर कहा, "हाँ, वहीं तो जा रहा हूँ।"



रहमत को लगा कि मिनी उसके उत्तर से प्रसन्न नहीं हुई। तब उसने घूँसा दिखाकर कहा, "ससुर को मारता पर क्या करुँ, हाथ बँधे हुए हैं।"



छुरा चलाने के अपराध में रहमत को कई साल की सज़ा हो गई।



काबुली का ख्याल धीरे-धीरे मेरे मन से बिलकुल उतर गया और मिनी भी उसे भूल गई।



कई साल बीत गए।



आज मेरी मिनी का विवाह है। लोग आ-जा रहे हैं। मैं अपने कमरे में बैठा हुआ खर्च का हिसाब लिख रहा था। इतने में रहमत सलाम करके एक ओर खड़ा हो गया।



पहले तो मैं उसे पहचान ही न सका। उसके पास न तो झोली थी और न चेहरे पर पहले जैसी खुशी। अंत में उसकी ओर ध्यान से देखकर पहचाना कि यह तो रहमत है।



मैंने पूछा, "क्यों रहमत कब आए?"



"कल ही शाम को जेल से छूटा हूँ," उसने बताया।



मैंने उससे कहा, "आज हमारे घर में एक जरुरी काम है, मैं उसमें लगा हुआ हूँ। आज तुम जाओ, फिर आना।"



वह उदास होकर जाने लगा। दरवाजे़ के पास रुककर बोला, "ज़रा बच्ची को नहीं देख सकता?"



शायद उसे यही विश्वास था कि मिनी अब भी वैसी ही बच्ची बनी हुई है। वह अब भी पहले की तरह "काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले" चिल्लाती हुई दौड़ी चली आएगी। उन दोनों की उस पुरानी हँसी और बातचीत में किसी तरह की रुकावट न होगी। मैंने कहा, "आज घर में बहुत काम है। आज उससे मिलना न हो सकेगा।"



वह कुछ उदास हो गया और सलाम करके दरवाज़े से बाहर निकल गया।



मैं सोच ही रहा था कि उसे वापस बुलाऊँ। इतने मे वह स्वयं ही लौट आया और बोला, “'यह थोड़ा सा मेवा बच्ची के लिए लाया था। उसको दे दीजिएगा।“



मैने उसे पैसे देने चाहे पर उसने कहा, 'आपकी बहुत मेहरबानी है बाबू साहब! पैसे रहने दीजिए।' फिर ज़रा ठहरकर बोला, “आपकी जैसी मेरी भी एक बेटी हैं। मैं उसकी याद कर-करके आपकी बच्ची के लिए थोड़ा-सा मेवा ले आया करता हूँ। मैं यहाँ सौदा बेचने नहीं आता।“



उसने अपने कुरते की जेब में हाथ डालकर एक मैला-कुचैला मुड़ा हुआ कागज का टुकड़ा निकला औऱ बड़े जतन से उसकी चारों तह खोलकर दोनो हाथों से उसे फैलाकर मेरी मेज पर रख दिया। देखा कि कागज के उस टुकड़े पर एक नन्हें से हाथ के छोटे-से पंजे की छाप हैं। हाथ में थोड़ी-सी कालिख लगाकर, कागज़ पर उसी की छाप ले ली गई थी। अपनी बेटी इस याद को छाती से लगाकर, रहमत हर साल कलकत्ते के गली-कूचों में सौदा बेचने के लिए आता है।



देखकर मेरी आँखें भर आईं। सबकुछ भूलकर मैने उसी समय मिनी को बाहर बुलाया। विवाह की पूरी पोशाक और गहनें पहने मिनी शरम से सिकुड़ी मेरे पास आकर खड़ी हो गई।



उसे देखकर रहमत काबुली पहले तो सकपका गया। उससे पहले जैसी बातचीत न करते बना। बाद में वह हँसते हुए बोला, “लल्ली! सास के घर जा रही हैं क्या?”



मिनी अब सास का अर्थ समझने लगी थी। मारे शरम के उसका मुँह लाल हो उठा।



मिनी के चले जाने पर एक गहरी साँस भरकर रहमत ज़मीन पर बैठ गया। उसकी समझ में यह बात एकाएक स्पष्ट हो उठी कि उसकी बेटी भी इतने दिनों में बड़ी हो गई होगी। इन आठ वर्षों में उसका क्या हुआ होगा, कौन जाने? वह उसकी याद में खो गया।

मैने कुछ रुपए निकालकर उसके हाथ में रख दिए और कहा, “रहमत! तुम अपनी बेटी के पास देश चले जाओ।“

Quick Shut Down Windows XP

If you’re experiencing slow shutdowns and log offs on your Windows XP, this trick will help you.




Instead of accessing the shutdown menu via Start->Turn Off Computer, open the Task Manager by pressing Ctrl+Alt+Delete.



Press “Shut Down” at the top of the Task Manager and choose what you want your Windows XP to do.

Face off

CONFIDENCE




Once all village people decided to pray for rain .On the day of prayer all



People gathered and only one boy came with an umbrella that's confidence.. .........







TRUST



Trust should be like the feeling of a one year old baby



When you throw him in the air, he laughs......



Because he knows you will catch him........







HOPE



A human being can live for



40 days without water



8 minutes without air



But not even 1 second without hope....





SO ALWAYS HAVE CONFIDENCE, TRUST OTHERS AND NEVER LOOSE HOPE

Moral 2

तीन आदमी, दो अधेड़ और एक युवा, किसी बीयर बार में बीयर पीने गये। जब वह पीने लगे तो एक आदमी बोला - ''लगता है बाहर बारिश हो रही है।'' गरमागरम बहस के बाद तय हुआ कि उम्र में सबसे छोटा छतरी लेने के लिये घर जाये। लड़का गुर्राया - ''मेरे जाने पर तुम मेरी सारी बीयर पी जाओगे।'' उसे इतमीनान दिलाया गया कि नहीं पीयेंगे, उसके हिस्से की ज्यों की त्यों रखी रहेगी। तब कहीं छोटे मियां छतरी लेने चले।


रात गहराने लगी पर छोटे मियां नहीं लौटे। अन्त में एक बोला - ''क्यों न उन हजरत के हिस्से की भी पी ही ली जाये। अब तो वे आने से रहे।''

दूसरा बोला - ''मैं भी यही सोच रहा था। आओ पी लें।''

बार के एक कोने की छोटी सी खिड़की से तेज आवाज आई - ''अगर पीओगे तो मैं छतरी लेने नहीं जाऊंगा।''

Moral

एक अंधी लडकी थी । उसे उसके एक दोस्त के अलावा सबने ठुकरा दिया था । पर वो दोस्त उससे बहुत प्यार करता था । लडकी रोज़ उससे ये कहती कि अगर वो उसे देख पाती तो उसी से शादी करती । एक दिन किसी ने उस लडकी को अपने आंखे दे दीं । जब वो देख सकने लगी तो उसने देखा की उसका वह दोस्त अंधा था । दोस्त ने उससे पूछा की क्या अब वो उससे शादी करेगी ? लडकी ने साफ़ इनकार कर दिया । इस पर उसका दोस्त मुस्कुराया और चुप चाप उसे एक कागज़ देकर चला गया । उसपर लिखा था -






"मेरी आखों का ख्याल रखना"

Inspire

A worried woman went to her gynecologist and said: "Doctor, I have a serious problem and desperately need your help! My baby is not even 1 yr. old and I'm pregnant again. I don't want kids so close together." So the doctor said: 'Ok, and what do you want me to do?' She said: 'I want you to end my pregnancy, and I'm counting on your help with this.' The doctor thought for a little, and after some silence he said to the lady: "I think, I have a better solution for your problem. It's less dangerous for you too.' She smiled, thinking that the doctor was going to accept her request. Then he continued: 'You see, in order for you not to have to take care of 2 babies at the same time, let's kill the one in your arms. This way, you could rest some before the other one is born. If we're going to kill one of them, it doesn't matter which one it is. There would be no risk for your body if you chose the one in your arms. The lady was horrified and said: 'No doctor! How terrible! It's a crime to kill a child! 'I agree', the doctor replied. 'But you seemed to be ok with it, so I thought maybe that was the best solution. The doctor smiled, realizing that he had made his point. He convinced the mom that there is no difference in killing a child that's already been born and one that's still in the womb. The crime is the same!

Santa Banta 2

banta sinh jee ne landan ke ek baar me pravesh kiya aur ek saath 3 beeyar ka order diya. beeyar aane ke baad unhone teeno me se bari-bari ek ek ghoonT le le kar beeyar khatm kee, fir baire ko bulaaya aur 3 beeyar fir se order kee.


baira jo yah dekh raha tha, bola - saahab, apane baar me kaafee sTok hai beeyar ka, aap ek-ek kar ke hee order karo, aur beeyar ka aanand lo.

banta sinh bole - are nahee, darasal, ham teen bhaee hai, ek kanaaDa me hai, ek dubee me hai, aur mai yahaa london me hoo. jab ham saath rahate the to ham log baar me jaakar ikaThThe hee beeyar piya karate the. aur jab ham apanee apanee naukaree dhandhe kee vajah se baahar nikale to hamane aapas me yah vaada kiya ki ham jahaa bhee

rahenge, isee tarah apane puraane dino ko yaad karake beeyar piya karenge.

banta sinh jee us baar me niyamit rup se aane lage aur usee tarah,har baar 3 beeyar order karate, 1 _1 karake teeno khatam karate aur chale jaate.

lagabhag ek saal baad, banta sinh jee baar me aaye, magar is baar unhone sirf 2 hee beeyar aarDar kee. yah dekh kar baar ke sabhee niyamit graahak aur baire chakit rah gaye, aur kisee anaishT kee aashanka karate huye shaant ho gaye. thoDee der baad ek baira aaya aur bola - saahab, mai aapake gam ko aur baDhaana nahee chaahata magar,

hamaaree puree sahaanubhooti aapake saath hai.

banta sinh jee ne thoDa chakit hote huye baire ko ghura fir jor se hans paDe - ho ho ho ...!! are nahee jee. mere sabhee bhaee bilkul sahee salaamat hai. baat bas itanee see hai ki, kal hee se........maine beeyar chhoD dee hai

Santa Banta

bantaasinh baar me baiThe huye sabako zila rahe the ki unakee bahut pahunch hai, aur vo sabako jaanate hai. santaasinh ne socha chalo dekhate hai. usane bantaasinh se 10 roo kee shart lagaee ki baar me ab jo bhee pahala vyakti aayega vo bantaasinh ko nahee pahachaanata hoga.


tabhee ek aadamee baar me ghusa aur ghusate hee bantaasinh ko dekh kar aavaaj dee - he bantaasinh, kaise ho?

shart haarane ke baad santaasinh bola ki chalo 100 roo kee shart, jo bhee saDak par pahala vyakti milega vo to tumhe nahee jaanata hoga.

dono saDak par nikale, ek aadamee paas se gujarate huye bol gaya - bantaasinh kya haal chaal?

kheej kar santaasinh bola ki shartiya apane pradhaanamantree to tumhe nahee pahachaanate honge. chalo 1000 roo kee shart.

dono pradhaanamantree nivaas pahunche, vahaa pahunchate hee vahaa tainaat sipaahee chillaaya - bantaasinh, tumhe pata hai na ki koee bhee is tarah yahaa nahee aa sakata?

tabhee pradhaanamantree ka kaafila vahaa se nikala, pradhaanamantree ke sachiv ne chalatee gaaDee se haath hila kar kaha - o bantaasinh, baDe dino baad dikhe?

santaasinh ka dimaag kharaab. usapar bantaasinh bole, dekho mai abhee jaake pradhaanamantree ke saath upar unakee baalakanee me aata hoo.

bantaasinh kahe anusaar pradhaanamantree ke saath upar baalkanee me najar aaye. unhone neeche santaasinh ko dekh kar haath hilaaya aur neeche aaye.

neeche aakar dekha ki santaasinh behosh paDe the, santaasinh ko hosh me laakar puchha ki kyo muze pradhaanamantree ke saath dekhakar behosh ho gaye?

santaasinh bole - nahee, jab tum upar the to koee mere peechhe se aaya aur upar ishaara kar ke puchha ki - ye bantaasinh baalakanee me kisake saath khaDa hai?

Akbar & Birble

One day Emperor Akbar and Birbal were taking a walk in the palace gardens. It was a nice summer morning and there were plenty of crows happily playing around the pond. While watching the crows, a question came into Akbar's head. He wondered how many crows were there in his kingdom.




Since Birbal was accompanying him, he asked Birbal this question. After a moment's thought, Birbal replied, "There are ninety-five thousand four hundred and sixty-three crows in the Kingdom".



Amazed by his quick response, Akbar tried to test him again, "What if there are more crows than you answered?" Without hesitating Birbal replied, "If there are more crows than my answer, then some crows are visiting from other neighboring kingdoms". "And what if there are less crows", Akbar asked. "Then some crows from our kingdom have gone on holidays to other places".

Education Fact

a person educated in only schools and colleges is an uneducated person

Student

1) Never make noise in class respect the fact that others are sleeping.




2) Keep the college clean so stay away.



3) Take some fruits for the animals in the staff room.



4) Always take books cos u dnt get pillow to help u sleep well.



5) Never be early to class or else no one will notice u

GARV SE KAHOO

FACTS TO MAKE EVERY Indian PROUD









Q. Who is the General Manager of MirriAd ?

A. Rajesh Thakkar















FACTS TO MAKE EVERY Indian PROUD









Q. Who is the GM of Hewlett Packard (hp) ?

A. Rajiv Gupta





Q. Who is the creator of Pentium chip (needs no introduction as 90% of the today's computers run on it)?

A. Vinod Dahm





Q. Who is the third richest man on the world?

A. According to the latest report on Fortune Magazine, it is Azim Premji, who is the CEO of Wipro Industries. The Sultan of Brunei is at 6 th position now.



Q. Who is the founder and creator of Hotmail (Hotmail is world's No.1 web based email program)?

A. Sabeer Bhatia



Q. Who is the president of AT & T-Bell Labs (AT & T-Bell Labs is the creator of program languages such as C, C++, Unix to name a few)?

A. Arun Netravalli



Q. Who is the new MTD (Microsoft Testing Director) of Windows 2000, responsible to iron out all initial problems?

A. Sanjay Tejwrika









Q. Who are the Chief Executives of CitiBank, Mckensey & Stanchart?

A. Victor Menezes, Rajat Gupta, and Rana Talwar.



Q. We Indians are the wealthiest among all ethnic groups in America , even faring better than the whites and the natives.

There are 3.22 millions of Indians in USA (1.5% of population). YET,

38% of doctors in USA are Indians.

12% scientists in USA are Indians.

36% of NASA scientists are Indians.

34% of Microsoft employees are Indians.

28% of IBM employees are Indians.

17% of INTEL scientists are Indians.

13% of XEROX employees are! Indians.





Some of the following facts may be known to you. These facts were recently published in a German magazine, which deals with WORLD HISTORY FACTS ABOUT INDIA .

1. India never invaded any country in her last 1000 years of history.

2. India invented the Number system. Zero was invented by Aryabhatta.

3. The world's first University was established in Takshila in 700BC. More than 10,500 students from all over the world studied more than 60 subjects. The University of Nalanda built in the 4 th century BC was one of the greatest achievements of ancient India in the field of education.

4. According to the Forbes magazine, Sanskrit is the most suitable language for computer software.



5. Ayurveda is the earliest school of medicine known to humans.

6. Although western media portray modern images of India as poverty striken and underdeveloped through political corruption, India was once the richest empire on earth.



7. The art of navigation was born in the river Sindh 5000 years ago. The very word "Navigation" is derived from the Sanskrit word NAVGATIH.

8. The value of pi was first calculated by Budhayana, and he explained the concept of what is now k! nown as the Pythagorean Theorem. British scholars have last year (1999) officially published that Budhayan's works dates to the 6 th Century which is long before the European mathematicians.



9. Algebra, trigonometry and calculus came from India . Quadratic equations were by Sridharacharya in the 11 th Century; the largest numbers the Greeks and the Romans used were 106 whereas Indians used numbers as big as 10 53.

10. According to the Gemmological Institute of America, up until 1896, India was the only source of diamonds to the world.



11. USA based IEEE has proved what has been a century-old suspicion amongst academics that the pioneer of wireless communication was Professor Jagdeesh Bose and not Marconi.

12. The earliest reservoir and dam for irrigation was built in Saurashtra.



13. Chess was invented in India .

14. Sushruta is the father of surgery. 2600 years ago he and health scientists of his time conducted surgeries like cesareans, cataract, fractures and urinary stones. Usage of anaesthesia was well known in ancient India .

15. When many cultures in the world were only nomadic forest dwellers over 5000 years ago, Indians established Harappan culture in Sindhu Valley ( Indus Valley Civilisation).

16. The place value system, the decimal system was developed in India in 100 BC.





Quotes about India .

We owe a lot to the Indians, who taught us how to count, without which no worthwhile scientific discovery could have been made.

Albert Einstein.









India is the cradle of the human race, the birthplace of human speech, the mother of history, the grandmother of legend and the great grand mother of tradition.

Mark Twain.



If there is one place on the face of earth where all dreams of living men have found a home from the very earliest days when man began the dream of existence, it is India .

French scholar Romain Rolland.



India conquered and dominated China culturally for 20 centuries without ever having to send a single soldier across her border.

Hu Shih

(former Chinese ambassador to USA )





ALL OF THE ABOVE IS JUST THE TIP OF THE ICEBERG, THE LIST COULD BE ENDLESS.

BUT, if we don't see even a glimpse of that great India in the India that we see today, it clearly means that we are not working up to our potential; and that if we do, we could once again be an evershining and inspiring country setting a bright path for rest of the world to follow.

I hope you enjoyed it and work towards the welfare of INDIA .









Please forward this post to your all known INDIANS................

क्या आप धर्मनिरपेक्ष हैं ?

जरा फ़िर सोचिये और स्वयं के लिये इन प्रश्नों के उत्तर खोजिये.....





१. विश्व में लगभग ५२ मुस्लिम देश हैं, एक मुस्लिम देश का नाम बताईये जो हज के लिये "सब्सिडी" देता हो ?



२. एक मुस्लिम देश बताईये जहाँ हिन्दुओं के लिये विशेष कानून हैं, जैसे कि भारत में मुसलमानों के लिये हैं ?



३. किसी एक देश का नाम बताईये, जहाँ ८५% बहुसंख्यकों को "याचना" करनी पडती है, १५% अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिये ?



४. एक मुस्लिम देश का नाम बताईये, जहाँ का राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री गैर-मुस्लिम हो ?



५. किसी "मुल्ला" या "मौलवी" का नाम बताईये, जिसने आतंकवादियों के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया हो ?



६. महाराष्ट्र, बिहार, केरल जैसे हिन्दू बहुल राज्यों में मुस्लिम मुख्यमन्त्री हो चुके हैं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मुस्लिम बहुल राज्य "कश्मीर" में कोई हिन्दू मुख्यमन्त्री हो सकता है ?

७. १९४७ में आजादी के दौरान पाकिस्तान में हिन्दू जनसंख्या 24% थी, अब वह घटकर 1% रह गई है, उसी समय तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब आज का अहसानफ़रामोश बांग्लादेश) में हिन्दू जनसंख्या 30% थी जो अब 7% से भी कम हो गई है । क्या हुआ गुमशुदा हिन्दुओं का ? क्या वहाँ (और यहाँ भी) हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार हैं ?

८. जबकि इस दौरान भारत में मुस्लिम जनसंख्या 10.4% से बढकर 14.2% हो गई है, क्या वाकई हिन्दू कट्टरवादी हैं ?

९. यदि हिन्दू असहिष्णु हैं तो कैसे हमारे यहाँ मुस्लिम सडकों पर नमाज पढते रहते हैं, लाऊडस्पीकर पर दिन भर चिल्लाते रहते हैं कि "अल्लाह के सिवाय और कोई शक्ति नहीं है" ?

१०. सोमनाथ मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिये देश के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिये ऐसा गाँधीजी ने कहा था, लेकिन 1948 में ही दिल्ली की मस्जिदों को सरकारी मदद से बनवाने के लिये उन्होंने नेहरू और पटेल पर दबाव बनाया, क्यों ?

११. कश्मीर, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, क्या उन्हें कोई विशेष सुविधा मिलती है ?

१२. हज करने के लिये सबसिडी मिलती है, जबकि मानसरोवर और अमरनाथ जाने पर टैक्स देना पड़ता है, क्यों ?

१३. मदरसे और क्रिश्चियन स्कूल अपने-अपने स्कूलों में बाईबल और कुरान पढा सकते हैं, तो फ़िर सरस्वती शिशु मन्दिरों में और बाकी स्कूलों में गीता और रामायण क्यों नहीं पढाई जा सकती ?

१४. गोधरा के बाद मीडिया में जो हंगामा बरपा, वैसा हंगामा कश्मीर के चार लाख हिन्दुओं की मौत और पलायन पर क्यों नहीं होता ?

Tuesday, February 16, 2010

अधिकारी : वह जो आपके पहुंचने के पहले ऑफिस पहुंच जाता है और यदि कभी आप जल्दी पहुंच जाएं तो काफी देर से आता है।


अपराधी : दुनिया के बाकी लोगों जैसा ही मनुष्य, सिवाय इसके कि वह पकड़ा गया है।


कंजूस : वह व्यक्ति जो जिंदगी भर गरीबी में रहता है ताकि अमीरी में मर सके।

कान्फ्रेन्स रूम : वह स्थान जहां हर व्यक्ति बोलता है, कोई नहीं सुनता है और अंत में सब असहमत होते हैं।


समझौता : किसी चीज को बांटने का वह तरीका जिसमें हर व्यक्ति यह समझता है कि उसे बड़ा हिस्सा मिला।


व्याख्यान : सूचना को स्थानांतरित करने का एक तरीका जिसमें व्याख्याता की डायरी के नोट्स, विद्यार्थियों की डायरी में बिना किसी के दिमाग से गुजरे पहुंच जाते हैं।

कामयाब व्यक्ति : जिसे पहली बीवी की वजह से कामयाबी हासिल होती है और कामयाबी की वजह से दूसरी बीवी हासिल होती है.


बीबी : वह स्त्री, जो शादी के बाद कुछ सालों में टोक-टोक कर आपकी सारी आदतें बदल दे और फिर कहे कि आप कितना बदल गए हैं।


समिति : ऐसे व्यक्ति जो अकेले कुछ नहीं कर सकते, परंतु यह निर्णय मिलकर करते हैं कि साथ साथ कुछ नहीं किया जा सकता।

किशोरावस्था : वो आयु जिसमें लड़के लड़कियों को ताड़ने लगते हैं और लड़कियां ताड़ने लगती हैं कि लड़के उन्हें ताड़ने लगे हैं.


वास्तविक आशावादी : ऐसा गंजा जो बाल उगाने वाला वो ही तेल खरीदता है जिसके साथ कंघी फ्री हो.


मच्छर : इंजेक्शन की ऐसी सिरिंज जो उड़ सकती है.

WiMax

WiMAX stands for World Interoperability for Microwave Access that enables the actual broadband wireless network with high speed. WiMAX operate same like WiFi but WiFi operate with some limitation like it is base band technology and cover only 100 feet radius with slow speed. WiMAX covers a radius of 50 Km and work with the speed of 70 Mbps. WiMAX is the replacement of the wired broadband. In wired broadband connection, we can transmit data with 512 Kbps to 10 Mbps speed and more, for example DSL broadband and cable broadband. In future all new desktop and notebook computers will be incorporated with WiMAX technology. With this technology you will be connected to the internet even you are driving your car with the speed of 120 Km.
Objective of WiMAX 
  • Superior Performance
  • Flexibility
  • Advanced IP-Based Architecture
  • Attractive Economics
 IEEE 802.16 Specifications
  • Range 30 mile radius from the base station for LOS (line-of-sight).
  • Range 4-6 miles radius from the base station for NLOS (Non-line-of-sight)
  • Maximum data speed supported as 70 Mbps.
  • Licensed frequency band: 2- 11 GHz
  • Un-licensed frequency band: 10- 66 GHz
  • Line of sight is not needed between user and the base station unless very high date rates are required at the user premises